Friday, March 15, 2013

पाकिस्तान हद में रहे तो बेहतर होगा

भारतीय संसद पर हमले के गुनाहगार अफजल गुरु की फांसी पर पाकिस्तानी संसद में पारित प्रस्ताव पर भारत ने तीखा एतराज जताया है। श्रीनगर में पाकिस्तानी साजो-सामान के साथ आए आत्मघाती आतंकियों के हमले के ठीक दूसरे दिन पाकिस्तानी संसद के इस कदम पर आपत्ति के साथ भारत ने कहा है कि पाकिस्तान अपने घर की हद में रहे तो बेहतर होगा।
पाकिस्तान संसद का प्रस्ताव भारत के घरेलू मामलों में बेवजह दिलचस्पी है। पाकिस्तान अपने घर के मामलों तक ही अपने को सीमित रखे। महत्वपूर्ण है कि बीते कुछ समय से पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को उछालने के लिए खासी बेताबी दिखानी शुरू की है। जनवरी में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ कर दो भारतीय जवानों की गर्दन रेतने की करतूत अंजाम देने से लेकर मामले को संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक देशों के मंच पर उठाने के साथ ही घाटी में आतंकी आग सुलगाने की कोशिश के अलावा अफजल की फांसी को लेकर प्रस्ताव पारित कर भारत के जख्मों को कुरेदा है।
पाकिस्तान के लगातार बढ़ रहे हौसलों ने एक बार फिर सरकार की पाक नीति को ही सवालों में ला दिया है। बीते दिनों भारत आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की अगवानी में भारत ने मेजबानी की मिसाल कायम की थी। वहीं अशरफ की सरकार ने संसद में इस मेजबानी के बदले भारत के एक आतंकी गुनाहगार को दी गई सजा पर भी निंदा प्रस्ताव पारित कर दिया। पड़ोसी मुल्क की संसद का यह कदम सर्वथा अनुचित है। महत्वपूर्ण है कि रिश्ते सुधारने की कवायद में बीते दिनों भारत और पाकिस्तान की संसदों के बीच भी तालमेल बढ़ाने की मीठी-मीठी बातें हुई थीं।
मनोज राठौर

Monday, November 15, 2010

लोगों को तलवे चाटते देखा...


मनोज राठौर
आदमी कितना नीचे गिर जाता है
यह आज मैंने देखा

अपने स्वार्थ के खातिर

लोगों को तलवे चाटते देखा।


शुक्र है, उस डगर से बचा हूं
जिस डगर पर लोगों को चलते देखा
साथ जिसने दिया हमेशा
उन्हें आज खाई में धकेलते देखा।

देखता हूं, तो आंखे भर आती हैं
जिन्हें अपनों के लिए लड़ते देखा
मजाक उनका उड़ाते हैं बेशर्म लोग
जिनके लिए हरदम उन्हें मरते देखा।

Saturday, October 30, 2010

तुम बोला या न बोला, हम मानते हैं...


मनोज राठौर
तेरा इरादा क्या है। हमे मालूम है। तू कुछ भी बाते करे। हमे समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत का हर नागरिक समझदार है। इस वाक्य को पाकिस्तान को समर्पित करना स्वाभिक है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने लंदन की मीडिया को मर्दानगी वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में लड़ाई के लिए पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठन तैयार किए और उन्हें कश्मीर पर फतेह हासिल करने की ट्रैनिंग भी दी। इतना ही नहीं मुर्शरफ ने इशारों ही इशारों में राजनीति में आने की इच्छा भी जाहिर कर दी।
यह बात दूसरी है कि पाकिस्तान में जाना उनके लिए मौत के मुंह में जाने से कम नहीं है, क्योंकि वहां उनकी हत्या के लिए कोई ईनाम घोषित कर देता है, तो कोई उनको बम का हार पहनाने की तैयारी में है। उनका आने का इंतजार केवल एक विशेष वर्ग को हैं, जो उन्हें पसंद करते हैं। लेकिन अब पाकिस्तान की तस्वीर बदल गई है। लंदन में रहकर अपने ही मूल्क को आतंकवाद की धारा में लाने की बात कह देना किसी को अच्छा नहीं लगा। यह उनकी गलतफेमी है कि इस बयान से उनकी राजनीति पक्ष मजबूत होगा। यह मुगालता उनकी मौत का कारण भी बन सकती है। जब तक अंगे्रज का साया उन पर है, तब तक उनका कोई बाल भी वाका नहीं कर सकता है। मूल्क लौटने से पहले ही कई गिद्धों की उन पर निगाहें है, जो उनके कार्यकाल के समय का हिसाब अदा करना चाहते हैं।
यह स्थिति इसलिए निर्मित हो गई है, क्योंकि उनकी गैर मौजूदगी में विपक्ष ने उनके खिलाफ मौत का मोर्चा खोल दिया है। यह बात, तो उनके आने वाले कल ही है, लेकिन वर्तमान में इस तरह की बयानबाजी उन्हें शोभा नहीं देती। मुशर्रफ भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनका बयान घर के अंदर का नहीं है, यह बाहर के दवाब का है, जो वह इन दिनों लंदन में झेल रहे हैं। इन दिनों मुशर्रफ लंदन की खुली वादियों में कैद की जिंदगी गुजर कर रहे हैं। वह पाकिस्तान में आने के लिए पिंजरे में कैद पक्षी की तरह फड़फड़ा रहे हैं। इधर, मुल्क से निकालने के बाद उनकी गद्दी का गिद्धों ने बुरी तरह नौंच दिया है और उनके लिए पाकिस्तान समेत राजनीति में आने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। इतना सब कुछ झेलने वाले पाकिस्तान ने लंदन की मीडिया के सामने सच तो बोलने की हिम्मत की। मुशर्रफ को यह भी अच्छी तरह से पता है कि भारत को पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के बारे में पता है और सबूत भी हैं। अब स्थिति है कि भारत को जातने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है। भारत भी जनता जानती है, कि आतंकवाद की शुरूवात कहां से होती है, क्यों होती है और कौन करवाता है। इसके बावजूद मुशर्रफ लंदन में बैठकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं। यह भारत के लिए उनकी हमदर्दी तो नहीं या फिर लंदन सरकार का दबाव।
उनका बयान क्या हमें यह बताना चाहता है कि पाकिस्तान आतंकवादी देश है, या फिर भारत पाकिस्तान को जानता नहीं है, या उनका बयान भारत के लिए षड्यंत्र है। जो भी बात हो मुशर्रफ की, भारत विश्वास करने वाला नहीं है। क्योंकि उसे मुशर्रफ और पाकिस्तान की आदत पता है, जो गले लग कर गोली मारने से भी नहीं चुकते। पाकिस्तान के लोगों के विचार अलग-अलग हैं। मगर, इरादा एक है, जो हम समझते हैं और जानते भी हैं।
सतर्क हैं हम
बेसतर्क हो, तुम

मत दिखाना, आंख

हमारे भी नाखुन बड़े हो गए हैं....

Wednesday, June 30, 2010

तू दगाबाज है, हम नासमझ...

गजल
देखने वाले, देख लेना तू
तुम समझदार हो, हम नासमझ।

मेरी सांस, तेरी जिंदगी

तू दगाबाज है, हम नासमझ...

जिंदा हूं, तेरी धड़कन से
तुम कर्जदार, हम नासमझ।

मेरा दिल, तेरी अमानत

तू दगाबाज है, हम नासमझ...


जान जाएगी, तेरे आंचल में
तुम खुददार हो, हम नासमझ।

धोखा मिला, हमने माफ किया

तू दगाबाज है, हम नासमझ...


मौसम बदले, तेरे नखरे से
तुम लकदार, हो हम नासमझ।

हर समय, तेरी सांसों के लिए

तू दगाबाज है, हम नासमझ...

आंखे नम है, तेरी हरकत से
तुम गददार हो, हम नासमझ।

मेरी उम्र, तूझे लग जाए

तू दगाबाज है, हम नासमझ...


देखने वाले, देख लेना तू
तुम समझदार हो, हम नासमझ।



मनोज
राठौर

Saturday, September 12, 2009

हवा में सांस मिलाकर

हवा में सांस मिलाकर
बयान करता हूं
हम भी तूफ़ान ला सकते हैं-2

इतना कमजोर न समझ
हम वो बादल हैं
जो पानी गिरा सकते हैं-2

धैर्य
मत आजमा
हम वो सेलाब हैं
जो समुद्र में सकते हैं-2

गलती जो रहे मेरी
हम वो बलिदानी हैं
जो सिर कटा सकते हैं-2

मनोज राठौर

Friday, August 21, 2009

जब कोई बच्चा ट्रेन में नजर आता है...

झुक-झुक करती ट्रेन
सीटी मारती
नौनिहाल की मासूम जिंदगी
पुकार लगाती
उनका दर्द देख दिल भी रोता
जब कोई बच्चा भूख से दम तोड़ता है।

रोलिया नसीब नहीं
जीवन में
घरों से कचरे में फेंके देते
मासूमों को
मन भी दुखी हो जाता
जब कोई बच्चा ट्रेन से कट जाता है।

जन्म से कोई नहीं
रिश्ते मर गए
बचपन कब बड़ा हुआ
सोचते थक गए
देख यह दृश्य शर्म आती
जब किसी बच्चे की आंखें भीग जाती है।

शिक्षा मिली
भिख मांगने की
सारी जिंदगी
स्टेशनों पर गुजारी है
मेरा मन भी दहल जाता
जब कोई बच्चा ट्रेन में नजर आता है।

मनोज राठौर

Sunday, August 16, 2009

सब आंखे बयान करती हैं...

तू है पापी
तू
है भ्रष्ट
कितना
भी छिपाए तू
सब
आंखे बयान करती हैं।

मुंह में राम
बगल
में छुरी
कितना
भी बने तू
सब
आंखे बयान करती हैं।

मन में पाप
बातों
में संतवाणी
कितना
भी ठगे तू
सब
आंखे बयान करती हैं।

झूट बोले
रंग
बदले
कितना
भी छले तू
सब
आंखे बयान करती हैं।
मनोज कुमार राठौर

Saturday, August 8, 2009

मेरे देश का कानून बूढ़ा हो गया


मनोज राठौर
भारत का कानून खुश होगा कि उसने देश की राजधानी स्थित गेटबे आॅफ इंडिया तथा झावेरी बाजार क्षेत्र में वर्ष 2003 में हुए दो बम विस्फोटों करने वाले आरोपी मोहम्मद हनीफ सईद, उसकी पत्नी फहमिदा और अशरत अंसारी को सजा ए मौत की सजा सुनाई। सात साल बाद सजा सुनाने वाला कानून अब बूढ़ा और थक सा गया है। काम तो बहुत बड़ा था क्योंकि बम विस्फोट में 54 लोग मरे और 244 भारत के नागरिक घायल हुए थे। ऐसे में आरोपियों को सजा सुनने में थोड़ी तो शर्म आई होगी। आरोपी भी यही सोच रहे होंगे की भारत जैसा कानून अमेरिका में लागू हो जाए, तो उसे चंद मिनटों में निस्तेनाबूद कर देगें। पर बेचारे वहां की सजा से खौफ खाते हैं। जेल में हराम की रोटी तोड़ने वाले आरोपियों को सात साल बाद सजा कम लग रही होगी। अदालत में सजा सुनने समय आरोपियों के चेहरे पर डर का भाव तक नहीं था। उन्हें इस बात का भय बिल्कुल नहीं सता रहा था कि उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है। आतंकवादियों ने सजा को शहीद के रूप में स्वीकार कर लिया। यदि हमारे कानून सजा को सात साल से पहले ही सुना देता तो शायद शहीदों के परिजन अपनी छाती ठोक कर यह गर्व से कह सकते थे कि यह है मेरे देश का कानून। लेकिन अब स्थित यह हो गई है कि भारत का हर एक नागरिक बोल रहा है ‘‘मेंरे देश का कानून बूढ़ा हो गया है।‘‘
हमारे देश की मेहमान नबाजी तो आरोपियों को भा सी रही है। इसी कारण से पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयाबा आतंकी संगठन भारत में स्वतंत्रता दिवस से पहले तबाही मचाने के लिए साजिश रच रहा है। इस बार उसके निशाने पर दिल्ली, कोलकाता और हैदराबाद हैं। हमारी खुफिया एजेंसी की मेहरबानी है कि वक्त से पहले साजिश का पता चल गया। वरना फिर एक बार देश खून से लतपत हो जाता। इस सूचना के बाद देश में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया गया। पाकिस्तान को पता नहीं है कि उसकी ओर से जम्मू संभाग में खोदी गई 300-400 मीटर लंबी सुरंग पड़ोसी देश में आ रही है। हालांकि सुरंग के निर्माणक पाकिस्तान इस मामले में कितनी भी चुप्पी साद ले, लेकिन उसकी असलियत और दोगलापन किसी से नहीं छुपा है। सुरंग की जानकारी के बाद आरोपियों ने डर के कारण सुरंग का काम रोक दिया है।
बूढ़े कानून की थकावट
-25 अगस्त, 2003: दक्षिण मुंबई के झावेरी बाजार और गेटवे ऑफ इंडिया में विस्फोट, 52 की मौत, 244 घायल।

-31 अगस्त, 2003: तीन आरोपी अशरत अंसारी [32], हनीफ सईद [46] और उसकी पत्नी फहमिदा सईद [43] गिरफ्तार।

-एक अक्टूबर, 2003: दो और आरोपी मोहम्मद अंसारी लड्डूवाला और मोहम्मद हसन बेटरीवाला पकड़े गए।

-दो अक्टूबर, 2003: एक और आरोपी जहीर पटेल :नाम बदल दिया गया है क्योंकि वह बाद में मामले में सरकारी गवाह बन गया: गिरफ्तार।

-पांच फरवरी, 2004: पोटा अदालत में छह आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल।

-पांच मई, 2004: पटेल सरकारी गवाह घोषित, पोटा अदालत ने माफी दी।

-20 जून, 2004: पांचों आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप तय किए गए।

-दो सितंबर, 2004: मुकदमे की सुनवाई शुरू।

-दिसंबर, 2008: सुप्रीम कोर्ट के पोटा समीक्षा समिति की रिपोर्ट को बरकरार रखा लड्डूवाला और बेटरीवाला को मामले से मुक्त किया गया।

-27 जुलाई, 2009: विशेष पोटा अदालत ने अशरत अंसारी, हनीफ सईद और उसकी पत्नी फहमिदा को दोषी ठहराया।

-चार अगस्त, 2009: अभियोजकों ने दोषियों को फांसी देने की मांग की।




Wednesday, July 15, 2009

पहले गर्भ परीक्षण, फिर कन्यादान

विवाह पूर्व कन्याओं का सामूहिक गर्भ परीक्षण कराए जाने के मामले को सड़क से लेकर संसद और विधानसभा में बवाल खड़ा हो गया। यह मामला राज्य सभा में गूंजा और इसे मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस ने भी उठाया। राष्टीय महिला आयोग ने तीन सदस्यीय जांच दल गठित कर शहडोल भेजने की तैयारी की है। आयोग अध्यक्ष गिरिजा व्या ने कड़ा रूख अपनाते हुए राज्य सरकार से 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी है। विवाह समारोह में 14 युवतियां जांच में गर्भवती पाई गई थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर शहडोल में धरना देकर घटना की निंदा की। विरोध करने वालों ने विवाह समारोह में मौजूद रहे विधायक समेत तमाम जिम्मेदार आला अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की।
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत 30 जून को शहडोल में आयोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन में आई 152 कन्याओं का गर्भ परीक्षण कराया गया था। मध्यप्रदेश विधानसभा में शहडोल जिले में गर्भ परीक्षण कराने का मामला शून्यकाल में उठाया गया। कांग्रेस के रामनिवास रावत ने इस शर्मनाक घटना पर सदन में चर्चा कराने की मांग की। अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने रावत द्वारा रखी गई बात को रिकार्ड में दर्ज होने की बात कहते हुए कहा कि इस संबंध में मेरे कक्ष में आकर चर्चा कर लें। इस घटना की अनेक राजनीतिक दलों के नेता, समाज सेवी संगठन एवं स्वैच्छिक संगठन निंदा कर जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग कर चुके है। इस संबंध में अभी तक राज्य सरकार की तरफ से स्पष्ट रूप से कोई जवाब भी नहीं आया है।
इस मामले की सबसे पहले जांच-पड़ताल कर पीपुल्स समाचार के सिटी चीफ राजेन्द्र गहरवार ने जनता के सामने उजागर किया था।

Saturday, July 4, 2009

समलैंगिक सम्बन्ध " जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा"

अब वे दिन दूर नहीं जब पप्पू संग दीपू और मीनू संग सीमा की बारात आप के घरों के बगल से गुजरेगी| भई पहले सुना था पप्पू पास हो गया है लेकिन अब तो दीपू, मीनू, सीमा सभी पास हो गए हैं| अब वो एक दुसरे को फ्लाइंग किस्स देंगे और पुलिस केवल मूकदर्शक बनी देखती रहेगी| भई! अब कौन धारा 14 और 21 का उल्लंघन करे| किसी के निजी कार्य में दखल देने का किसी को अधिकार नहीं है| बदलते ज़माने के साथ-साथ प्यार की परिभाषा भी बदल रही है| जुहू चौपाटी, विक्टोरिया पार्क में अब दो लड़के और दो लडकियां (माफ़ कीजियेगा वयस्क) इश्क लड़ायेंगे| और उनके मुह से निकलेगा " समलैंगिक सम्बन्ध " जरा जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा| बहुत हो गयी मजाक और मस्ती...
और हम सभी जानते हैं कि भारत संस्कृति का देश है| लेकिन आज हमारे देश को क्या हो गया है? ऐसा लग रहा है कि पाश्चात्य संस्कृति के भी कान काट लिए गए हों| चौंकिए मत, ये समाज में चंद लोगों कि वजह से ही हुआ है| बहस का मुद्दा धारा 377| है भी बहस का विषय| 149 साल के लम्बे इतिहास में जो पहले नहीं हुआ वो 2 जून, 2009 को हो गया| समलैंगिक सम्बन्ध को क्लीन चिट दे दी गयी|
अप्राकृतिक! जिसकी भगवान ने भी मंजूरी नहीं दी किसी को| समाज आज जिस चीज को सही नहीं मानता, उसी को रजामंदी दे दी गयी| माना कि सभी को समान हक मिलना चाहिए| इसका मतलब यह तो नहीं कि जो अमानवीय कृत्य कि श्रेणी में आता है उसे नजरअंदाज कर दिया जाये| तो फिर ऐसा क्यों? यह समाज में रह रहे उन लोगों कि मानसिकताओं के साथ बलात्कार है जो कि समलैंगिक सम्बन्ध को सही नहीं मानते|
जरा सोचिये कि आने वाली पीढी पर इसका क्या असर पड़ेगा? कल तक जिस कार्य को अपराध माना जाता था, आज वो अपराध कि श्रेणी में नहीं है| शायद हम ये नहीं जानते कि ऐसे सम्बन्ध को रजामंदी देने से एड्स जैसे खतरनाक बिमारी को न्योता दे रहे हैं|
यह लेख मेरे घनिष्ट पत्रकार मित्र अभिषेक राय द्वारा लिखा गया है।

Sunday, June 21, 2009

पापा जैसा कोई नहीं...

भगवान का दूसरा रूप हैं पिताजी। कर्तव्य और जिम्मेदारियों से लदी जिंदगी को अपने कंधों पर ढोने वाले व्यक्ति की दासता को कौन भूल पाया है। उन्हें हर पल याद किया जाता है। चाहे वे दुख हो या सुख। मैं भी कहता हूं कि मेरे पापा भगवान है। दुनिया में यह बात सभी लोग सोचते होंगे।
पिता बनने के साथ जितनी खुशी मिलती है, उतना ही दायित्वों में बढ़ोत्तरी भी हो जाती है। पिता को पितृ धर्म निभाने के अलावा संरक्षक, पालक और दोस्त सरीखे होने जैसी जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ता है। फादर्स डे 19 जून 1910 को सबसे पहले वाशिंगटन में मनाया गया। इस शुभ दिन की शुरूआत सोनेरा डोड ने की। सोनेरा जब छोटी थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सानेरा को मां का प्यार भी दिया। एक दिन सोनेरा को ख्याल आया कि एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं? इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया। 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने राष्ट्रपति स्तर पर फादर्स डे पर अपनी सहमति दे दी। 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनने की आधिकारिक घोषणा की।मशहूर पिता की तपस्या से आज उनके बेटों का समाज में सर्वोच्य स्थान है। भारत देश के किसान पुत्र से लेकर मजदूर वर्ग के पिता ने इस कर्तव्य को जिम्मेदारी से निभाया है।
पेश है, कुछ पिता-पुत्र के नाम।
जेआरडी टाटा-रतन टाटा
हरिवंश राय बच्चन-अभिताभ बच्चन
धीरूभाई अंबानी-मुकेश एवं अनिल
आदित्य बिरला-कुमारमंगलम बिरला
मोतीलाल नेहरू-जवाहरलाल नेहरू
पंडित रविशंकर-अनुष्का शंकर
महेंद्र द्विवेदी-कृष्ण कुमार द्विवेदी (मेरे घनिष्ठ मित्र)
तथ्य कहते हैं दासता
-फादर्स डे हमेशा जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।
-पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को अमेरिका में मनाया गया।
-रोम वाले दिवंगत पिता का फरवरी माह में सम्मान करते हैं।
-1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ।
-फादर्स डे पर नेकटाई सबसे मशहूर और प्रचलित दिया जाने वाला उपहार है।
यादे पापा की...
-अमिताभ बच्चन
हरिवंश राय बच्चन हर साल अपने बेटे अमिताभ के जन्म दिन पर एक नई कविता लिखते थे। 1982 में जब अमिताभ बच्चन का एक्सीडेंट हुआ था तब भी उन्होंने एक कविता लिखी थी, लेकिन उसे लिखते हुए वे इमोशनल हो गए और फूट-फूट कर रोने लगे। अमिताभ कहते हैं कि मैंने अपने पिता को इस तरह से रोते हुए कभी नहीं देखा। अमिताभ आज भी पिता की याद आने पर उनके द्वारा लिख गई कविता की इन पंक्तियों को अक्सर गुनगुनाते हुए देखे जा सकते हैं।हर्ष नव, वर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव।
-राहुल गांधी
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राहुल गांधी अपने पिता स्वर्गीय राजीव गांधी की गोद में बैठकर रोते हुए लोगों के सामने आए थे। वहीं 25 मई 1991 में पिता की मृत्यु के समय राहुल को अपनी मां सोनिया गांधी को ढांढस बंधाते हुए देखा गया। राहुल कहते हैं मै आज जो भी अपने पिता और पूर्वजों के आशीर्वाद के कारण हूं। राजीव की छवि राहुल के काम में आज भी स्पष्ट झलकती है।
-शाहरूख खान
फिरोज साहब के इंतकाल का दुख मुझे भी उतना ही है जितना कि फरदीन को, क्योकि मेरे अब्बू का इंतकाल भी कैंसर की वजह से ही हुआ। आज इस बुलंदियों को छूने के बाद भी जिंदगी में कहीं कोई कमी रह गई, क्योकि आज वे दुनिया से जा चुके हैं जो इस समय मेरी कामयाबी को देखकर इतना खुश होते जितना कोई दूसरा नहीं हो सकता।
-मीरा कुमार
लोकसभा की पहली महिला स्पीकर का पद संभालने वाली मीरा कुमार अपनी सफलता का श्रेय अपने स्वर्गीय पिता जगजीवन राम को देती हैं। मीरा के लोकसभ में स्पीकर बनते ही लोगों के दिलों में उस जमाने की याद ताजा हो गई जब वे अपने पिता जगजीवन राम के साथ जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात कर ने तीन मूर्ति भवन जाती थी। मीरा कहती है कि जब 1967 में बाबूली स्वतंत्र पार्टी के अग्रिभेज से कड़ा संघर्ष करते थे तो मैं भी उनके साथ एंबेसडर कार से गांव-गांव जाती थी। उसकी वक्त उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि लोगों की सेवा का सबसे अच्छा माध्यम राजनीति में आना हो सकता है। बाबूजी के निधन के बाद वर्ष 89 में पहली बार चुनाव में किस्मत आजमाने वाली मीरा को जहां लगाातार दो बार असफलता मिली, वहीं विभिन्न राजनैतिक मोर्चों पर संघर्ष करते हुए आज मीरा कुमार लोकसभी की पहली महिला स्पीकर पद पर विराज मान है।
ऐसे ही कई हस्तियां है, जिनकी सफलता के पीछे उनके पिता की कड़ी मेहनत, तपस्या छिपी है। इस बात को उनके बेटे-बेटी स्वयं मानते है।
महसूस करो उस पल को
जिसे तू ने साथ गुजारा
आज उनकी याद करो तुम
जिसने तुझे चलना सिखलाया
मनोज कुमार राठौर