Saturday, June 20, 2009

ये तो होना ही था...


सरकार पोटा तो लागू नहीं कर पाई, गुजकोका को क्या खाक लागू करेगी।
मनोज कुमार राठौर
आतंकवाद पर लगाम कसने के लिए बनाए गए कठोर कानून हवा की तरह छू हो गए हैं। पोटा के बाद गुजकोका को भी सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। बहाना था कि इस कानून में संशोधन करने की गुंजाईश है। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम ने आतंकवाद के संदर्भ में कहा था कि आतंकवाद एक वैश्विक खतरा है और उससे निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद निरोधक बल का गठन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश ही नहीं सारा विश्व आतंकवाद को झेल रहा है। कलाम ने सही कहा। लेकिन उनकी सुनने वाला कौन है। कलाम के अलावा भी देश के कई महान विद्ववानों ने इस विषय पर अपने विचार दिए हैं। अभी तक आतंकवाद को संरक्षण देने वाले कानूनों पर जोर दिया। सरकार किसी की भी हो कानून तो देशहित के लिए बनाता है। पर जाने क्यों आतंकवाद जैसे अभिशाप को खत्म करने के लिए कानून लागू नहीं होते। आखिर गलती सरकार के प्रबंधन की है, जो इसका निर्वाह करे बिना उसे गलत ठहरा देती है।
पोटा के बाद गुजरात के आतंक रोधी विधेयक (गुजकोका) पर सरकार के फैसले की गाज गिरी है। फैसले का सम्मान करते हुए कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा कि पोटा से सख्त प्रावधान वाला कोई विधेयक अगर केन्द्र सरकार के पास भेजा जाएगा तो स्वभाविक रूप से उस पर ऐतराज होगा। आतंकवाद के विरोध में पोटा तो लागू नहीं हुआ और अब सरकार गुजकोका को क्या खाक लागू करेगी।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति से यह सिफारिश करने का फैसला किया है कि विधेयक को गुजरात सरकार को वापस लौटाया जाए ताकि मंजूरी के लिए उस पर विचार करने से पहले उसमें तीन महत्वपूर्ण संशोधन किए जा सकें। गुजकोका में एक यह प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी के सामने दिया इकबालिया बयान अदालत में भी मान्य होगा। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। कानून के एक अधिनियम के अनुच्छेद में कहा गया कि अगर सरकारी वकील ने विरोध किया तो अदालत जमानत नहीं दे सकती। जबकि अदालत के पास जमानत देने का अधिकार होना चाहिए। इन दोनों के अलावा गृहमंत्री ने इस अधिनियम की धारा 20(सी) में भी संशोधन की जरूरत बताई। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इस धारा में किस बात का उल्लेख है। चिदंबरम ने कहा कि एक बाद इन संशोधनों के पूरा हो जाने पर मंत्रिमंडल इस मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने की स्थिति में होगा।
मंुबई, अहमदाबाद, बेगंलुरू में हुए आतंकवादी हमलों में बेगुनाहों की जान गई थी। लेकिन हमारी आदर्शवादी सरकार यह भूल गई है कि जो लोग मारे गए थे वे किसी के बेटे, किसी के पति और किसी के आंख के तारे थे। सरकार को जल्द से जल्द पोटा ओर गुजकोका लागू कर देना चाहिए।

1 comment:

  1. bahut achha manoj bhai lage raho

    Prashant Sharma
    Crime Reporter
    samay Jagat Bhopal

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