Wednesday, November 19, 2008

तू लिख, तुझे कौन मना करता है...


मनोज कुमार राठौर

1
उठा कलम जरा कुछ लिख दे
तेरी लिखाई में खुदा बसता है
कलम की नौक पर सच की धार चला
तू लिख, तुझे कौन मना करता है।
2
हर शब्द में ताकत भर दे
तेरी शब्दों में भगवान बसता है
नीम से शब्दों को शहद लगाता चल
तू लिख, तुझे कौन मना करता है।

3
लेखक तू है, सब जग जाने
कलम तेरी है, सब जग माने
काहे तू फिर डरता है
तू लिख तुझे कौन मना करता है-2

Tuesday, November 18, 2008

मालेगांव मामले में एटीएस का रवैया ढिला!

मनोज कुमार राठौर
महाराष्ट के मालेगांव बम विस्फोट मामले में लेफ्निंेट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को दोषी ठहराया गया। एटीएस ने कर्नल के खिलाफ सबूत भी जुटाए, लेकिन अभी तक पैस नहीं किए। अदालत में कर्नल की पेसी पर पेसी कराई जा रही है। इन पेसियों का अभी तक कोई निर्णय नहीं निकला। अब तो ऐसा लगता है कि एटीएस की टीम अंधेरें में तीर चला रही हो। एटीएस के अनुसार आरोपी पुरोहित ने 60 किलो आरडीएक्स सेना के डिपो में जमा नहीं किया था। इस आरडीएक्स का इस्तेमाल समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों में किया गया था, परन्तु इस मामले में सेना के वरिष्ट अधिकारियों का कहना है कि यदि जम्मू कश्मीर मंे आतंकवादियों से आरडीएक्स बरामद किया जाता है तो वह आर्टिलरी यूनिट के अधिकारियों के हवाले किया जाता है। बाद में इस आरडीएक्स को राज्य पुलिस को सौंप दिया जाता है। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित चूंकि मिलिट्री इंटेलिजेंस में तैनात थे, इसलिए उनके पास आरडीएक्स जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। इस मामले में तो मानो कानुन का सारेआम मज़ाक उडाया जा रहा है। यदि कर्नल की तैनाती में आरडीएक्स गायब हुआ है तो उसे सजा देना चाहिए और कर्नल मिलिट्री इंटेलिजेंस में तैनात थे तो उन्हें इस मामले से बरी किया जाना चाहिए। एटीएस के इस ढिले रवैये से ऐसा लगता है कि इस मामले के फैसले में वर्षों लग जाएगें।

Saturday, November 15, 2008

हाईटेक हुआ चुनाव प्रचार


मनोज कुमार राठौर
राजनीति पार्टियां चुनावी माहौल में वोट बाटौरने के लिए प्रचार के नये-नये हथकंडे अपना रही है। भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए हाईटेक तरीका अपनाया है। यह सभी पार्टियां मोबाईल, इंटरनेट, प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक चैनलों के आलावा बोथलाइन(दो और चार पहिया वाहनों पर रात व दिन में से रात और दिन में) प्रचार कर रही है। स्वतंत्रता के दौरान हमारे राजनेताओं को प्रचार की एहमियत का पता नहीं था। हमारे देश में जैसे-जैसे विकास की गंगा बहती गई, वैसे-वैसे राजनेताओं ने प्रचार के तौर-तरीके भी सीखें। आज हमारा देश चहूमुखी विकास कर रहा है और इस विकास के साथ राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के तरीकों में भी बदलाव किया। पहले जहां पार्टी चुनाव के प्रचार के लिए आम सभा का आयोजन रखती थी जिसमें लाखों लोग सिरकत भी करते थे। साईकिल, तांगे और बैलगाड़ियों से भी प्रचार किया जाता था लेकिन आज हवाई जहाज और चार पहिया वाहनों से प्रसार-प्रचार किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के स्टार प्रचारक शिवराज सिंह, बसपा प्रमुख मायावती और भाजशा की राष्ट्रीय अध्यक्ष उमा भारती भी हवाई जहाज से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अमेरीका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार-प्रचार तरीकों को भारतीय राजनीति में अपनाया जा रहा है। जहां दोनों दावेदारों ने डिजिटल मीडिया जैसे यू ट्यूब, ब्लाॅग, सोषियल नेटवर्क, आनॅलाइन पेटिषन्स, आॅनलाइन गु्रप्त, ई-मेल आदि का चुनाव प्रचार के लिए जमकर प्रयोग किया। भारतीय राजनीति पार्टियों में भाजपा ही इन हाईटेक संचार माध्यम का प्रयोग कर रहे हंै।

पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी बीमारी के कारण भाजपा का प्रचार-प्रसार करने में असमर्थ हैं, उनकी इस कमी को पूरा करने के लिए भाजपा ने उनके भाषण की एक सीडी बनाई और उसकी के माध्यम से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अपने प्रचार-प्रसार के लिए पार्टियां बड़ी-बड़ी विज्ञापन एजेंसी के शरण में जा रही हंै। हाईटेक प्रचार के लिए पार्टी अरबों रुपए खर्च कर देती है। यह धन चुनाव के वक्त तो पार्टियां लगा देती हंै लेकिन चुनाव जीतने के दौरान पलभर में वसूल भी कर लेती है। यही अरबों रुपए यदि देष के विकास कार्यों में लगाया तो शायद हमारे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।


Friday, November 14, 2008

औरत है तुझे औरत रहना है..

मनोज कुमार राठौर
घर-द्वारे तुझे है रहना
अत्याचार तुझे है हना
औरत है तुझे औरत रहना है...


पहले पति की बात सुनना
फिर बेटे की हरकत पर रोना है
औरत है तुझे औरत रहना है...


कितनी तू आवाज उठाए
यही देश का रोना है
औरत है तुझे औरत रहना है...


लोग उठाये तुझ पर उंगली
स्वच्छ नदी सी बहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...

तुझे जलाए लाख दबंगे
कष्टकारी पीड़ा सहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...


तू ही कल का भविष्य बनाए
जब भी लोगों यह कहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...

Monday, November 10, 2008

विदेशों में भारतीयों की स्थिति











मनोज कुमार राठौर
विदेशों में भारतीयों ने अपने देश का नाम रोशन किया है। जापान की एक पत्रिका में छपे आकड़ों के अनुसार विदेशों में लगभग 30 प्रतिशत भारतीय नासा में वैज्ञानिक, 20 प्रतिशत डाॅक्टर और 25 प्रतिशत अन्य कंपनियों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहंे हैं। मीडिया और सरकारी रिपोर्टो में छपे आकड़़़़ों में भारतीयों की उपलब्धियों को प्रायः रेखांकित किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीयों की स्थिति विदेश में दयनीय बनी हुई है। भारतीय विदेशी चमक-दमक में इतने डूब जाते हैं कि वह अपने देश को भी भूल जाते हैं। अधिकतम भारतीय विदेशों में काम करना पसंद करते हैं। भारतवासियों की धारा का प्रवाह विदेश की ओर है और वह तीव्र गति से इस ओर प्रस्थान कर रहे हैं।

ब्रिटेेन के नागरिक अप्रवासी भारतीयों को जिस छवि को प्रतिदिन देखते हैं उसें लेेकर उन्होंने अपनी-अपनी कुधारणाएं बना रखी हैं। गोरी चमड़़़ी के सिरमौर समझने वाले आकों को यह लगता है कि अप्रवासियों हमारी नौकरियां और रोजगार छीन रहे हैं। वहां भारतीयों की बढ़ती संख्या से उन्हें अपना देश भी अपना नहीं लगता है, इसलिए वह भारतीयों के साथ भेदभाव करते हैं। वहां भारतीयों सम्पत्ति का मूल्य गोरों की सम्पत्ति मूल्य के मुकाबले बहुत कम है। इससे अंदाजा लगाया जाता है कि ब्रिटेन में भारतीयों की स्थिति कैसी होगी?

विदेशों मेें भारतीयों पर अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन हमारी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। अमेरिका की एक जहाज निर्माण कम्पनी ‘सिग्नल इन्तरनेशनल ’ जो मिसीसिपी में स्थित है। करीब 100 भारतीय श्रमिकों ने कम्पनी के खिलाफ शोषण का आरोप लगाया था लेकिन कंपनी ने उनके इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया । उन्हंांेने इस संदर्भ में भारत सरकार से गुहार लगाई। भारत सरकार ने उनकी गुहार तो सुनी लेकिन उसे भी अनसुनी करने की भरपूर कोशिश की गई। भारत सरकार ने अपना एक दल अमेरिका जांच करने के लिए भेजा। अमेरिका गए दल ने जब भारत जाकर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें शोषण संबंधित मामले को गलत बताया गया था। रिपोर्ट में भारतीयों के शोषण की जानकारी को छूटी साबित कर दी गई। इस बात का खुलासा श्रमिक वर्ग के नेता ने करा, उन्होंने कहा कि भारतीय दूतावास द्वारा भेजी गई टीम केवल सिग्रलपरिवार में काम करने वाले मजदूरों से ही मिल कर लौट गई । वह अन्य भारतीय मजदूरों से नहीं मिली। भारत सरकार के भेजे गए इन नमूनों की इस गलती से ऐसा लगता है कि अमेरिका सरकार ने इन्हें खरीद लिया था इसलिए तो अधूरी जानकारी लेकर भारत लौट गए। हमारे देश के यह हौनहार दूतवास तो लौट आए मगर उन 100 भारतीयों का क्या होगा, जिनका शोषण किया जा रहा है! इसी प्रकार अमेरिका के अलावा भी कई देशों में भारतीयों की स्थिति ठीेक नहीं है।

सभी हमसफर जाते है
कौन किसकी गांरटी लेता है
जिसकी और ध्यान गया
उस पर देश को गर्व होता है
जिसकी और ध्यान नहीं गया
वह शोषित होता है।

Wednesday, November 5, 2008

धर्म गुरू सवालों के बीच!


मनोज कुमार राठौर
भारत की इस पावन धरा पर न जाने ऐसे कितने महापुरूषों और विद्ववानों ने जन्म लिया है, जिनके विचार से आज भी लोग प्रभावित होते हैं। सभी धर्म के अपने-अपने धर्म गुरू होेते हैं और वह अपने-अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं। प्राचीन काल में गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का और हजरत मोहम्मद ने इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार किया। यह सभी अपने-अपने धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करते थे ताकि लोग उनके धर्म को समझ सके। धर्म गुरू जगह-जगह जाकर लोगों को एकत्रित कर धर्म की ज्ञान का पाठ पढ़ते थे, धीरे-धीरे इन सभी महापुरूषों को धर्म गुरूओं की संज्ञा दी जाने लगी, लेकिन आज के इस युग में धर्म गुरूओं की परिभाषा बदल गई है। आज यह धर्म गुरू धन की लालसा में लोगों को महिमा मंडित करते हैं। अब धन के साथ-साथ इनकों तन की भुख लगने लगी हैं इसलिए यह अपने भक्तों के साथ अश्लील हरकत करते हैं। आज के सभी धर्म गुरू आए दिन सावलों में घिरे रहते हैं। आज के धर्म गुरूओं पर अत्याचार, प्रताड़ना, बाल मजदुरी, अश्लीलता , हत्या, भ्रष्टाचार, दुराचार, काले धंधे और अवैध तरीके से कब्जा करने का आरोप हैं।
धर्म गुरू पर से लोगों का विश्वास उठने लगा है। जब भी सत्संग या प्रवचन की बात होती है तो लोग उसमें भाग लेने से कतराते हैं। भारत की इस पावन भूमि को यह धर्म गुरू अपने कुकृत्य से दूषित कर रहंे हैं। आईबीएम 7 न्यूज़ चैनल ने इन धर्म गुरूओं के खिलाफ एक स्टिंग आपरेशन किया था जिसमे कई धर्म गुरूओं की काली करतूते लोगों के सामने आई थी। पंजाब में बाबा राम रहिम की कालगुजारी किसी से छुपी नहीं है। उन्होंने किस तरह पहले महिलाओं के साथ अष्लील हरकत की और उसके बाद अपने वाहन चालक की मौत के मामले में विवादों में घिरे रहे। बाबा की ऐसी करनी के बाद भी वह आज भी आजाद है। ऐसा क्यो? यह जनता को पता है कि उनके साथ कई कानूनी अधिकारी और राजनीतिज्ञ नेता भी शामिल हैं जो इस काम में सक्रिय भुूमिका निभाते हैं। यदि उन्होंने बाबा को बेनाकाप किया तो उनकी भी पोल खुल जाएगी। इन सभी कारणों की वजह से उनकी फाइलें जल्द ही बंद हो जाती हैं। ऐसे में कानून बनाने वाले ही इन डोगियों को पनाहा दे रहा है, ऐसे में इनकी दुकानदारी कौन बंद कराएगा? अखबारों की लीड खबर बनने वाले धर्म गुरू इतने निर्डर हैं कि अब वह बलात्कार जैसे दुष्कर्म करने से भी नहीं खबराते। सत्संग की आड़ में यौन शोषण कर रहे लाल सांई उर्फ लाल बूलचंदानी के खिलाफ पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज किया। बस यह मामला दर्ज किया गया अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी। भोपाल के बैरागढ़ स्थित आश्रम के धर्म गुरू लाल सांई ने एक किशोरी के साथ बलात्कार किया। किशोरी ने लाल सांई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई, वह दो साल पहले इस ढोंगी बाबा के संपर्क में आई थी। उस समय वह स्कूल में पढ़ती थी और केवल 14 साल की थी। वह अब एक इंजीनियरिंग काॅलेज में फस्र्ट ईयर की छात्रा है। लाल सांई ने उसे ध्यान सत्संग के नाम पर अपने आश्रम मंे बुलाया। वहां उसे एक महिला डाॅक्टर की मदद से नषीली दवा पिलाई गई और इसके बाद उसके साथ बलात्कार किया गया। ये सिलसिला वर्ष 2006 से चल रहा था। बाबा के चुंगल से निकलने के प्रयास किया तो बाबा ने उसे ब्लेकमेंल करना शुरू कर दिया, इस कारण उसने मुंह नहीं खोला। बाबा की काली करतुतों का भंडा आखिर फूट ही गया, छात्रा ने परेशान होकर इसकी शेकायत जब पुलिस से की तो पुलिस ने बाबा के आश्रम पर छापा मारा तो वह नौ दो ग्यारहा हो गया। इस शैतान को पहले से यह खबर मिल गई थी कि उसके आश्रम पर पुलिस छापा मारने वाली है। इससे यह बात सामने आती है कि आश्रम पर छापे की खबर बाबा को किस ने दी। इस बात का पता तो पुलिस को ही था। अब इसका क्या मतलब निकाला जाए? पुलिस के कई आला अधिकारी पर शक की सुई घुम गई है। जब यह बात मीडिया में आई तो पुलिस दबाव में आई और जांच शुरू की। आज इस मामले में कई बड़े नेता, अधिकारी और ख्याति प्राप्त व्यक्ति भी शामिल हैं, लेकिन यह सब बाते हवा में हैं किसी के विरूद्व कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। बाबा की इस कालगुजारी से जनता आक्रोषित तो हुई लेकिन कुछ कर न सकी। जब हमारे देश का कानून ही विकलंाक है तो उस देश की व्यवस्थाएं कैसी होगी?

आशाराम बापू के आश्रम में बच्चों की मौत का रहस्य अभी भी नहीं सुलझ सका है। यह मुद्दा तो मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचा था, इसके अलावा आज भी ऐसे कई मामले हैं जो मीडिया से सामने नहीं आ सके हैं। किशोरियों के साथ दुष्कर्म के मामले आए दिन बढ़ते जा रहे हैं। धर्म गुरूओं की इन हरकतों ने सम्पूर्ण भारत की आस्था पर चोट की हैं। इस पवित्र और निर्मल देश को जिन धर्म गुरूओं ने अपने विचारों और कर्मों से सिंचा है, आज उनकी मेहनत पर यह डोगी धर्म गुरू पानी फेर रहे हैं।

कुछ तो मर्यादा का ध्यान करो।
तुम हो विचारक, कुछ तो शर्म करो।।


Tuesday, November 4, 2008

भारतीयों और कालों के बीच खाई!

मनोज कुमार राठौर
भारतीय मूल के लोग ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंग्लैंड तक रंगभेद के ख़िलाफ़ आवाज उठाते नजर आते हैं लेकिन कीनिया के मूल निवासी भारतीय मूल के लोगों को शोषितों में नहीं शोषकों में गिनते हैं। कीनिया के मूल निवासियों का कहना है कि भारतीय मूल के लोगों ने उनका शोषण किया है, हालाँकि भारतीय मूल के लोग इस बात से इनकार करते हैं।अगर आप सड़क पर चलने वाले आम काले कीनियाई व्यक्तियों से बात करें तो भारतीय मूल के लोगों के बारे में आपको कुछ ज्यादा अच्छे विचार सुनने को नहीं मिलेंगे। एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि कुछ भारतीय तो अच्छे हैं, लेकिन सब वैसे नहीं हैं। उनमें लोगों का शोषण करने की मजबूत फितरत नजर आती है।

बुरा व्यवहार :
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि भारतीय मूल के लोग कीनिया में जाति व्यवस्था लाना चाहते हैं और उनका व्यवहार यहाँ के मूल काले लोगों के साथ बेहद बुरा है। यह भी सुना कि भारतीय मूल के लोग तो गोरे लोगों से भी बुरे हैं क्योंकि वो अफ्रीकी लोगों को कम वेतन देते हैं, और उन्हें नीचा भी दिखाना चाहते हैं।
करीब-करीब हर व्यक्ति से यही सुनने को मिला कि भारतीय मूल के लोग अपने सघन आबादी वाले इलाकों में रहते हैं और उनमें पार्कलैंड भी एक ऐसा ही इलाका है। भारतीय मूल के लोग आम तौर पर कीनियाई काले लोगों से दूरी बनाकर अपने ही लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं।कई लोगों का यह भी मानना है कि भारतीय मूल के लोग सिर्फ अपने मतलब के लिए स्थानीय काले लोगों के साथ व्यापार करते हैं। उनकी यह भी शिकायत है कि भारतीय मूल के लोगों का एक पाँव कीनिया में और दूसरा पाँव भारत में रहता है। अगर देश में कोई संकट आता है तो वो देश से रफूचक्कर होने की पहले सोचते हैं। दिसंबर 2008 में जब कीनिया में चुनाव के वक्त हिंसा भड़की थी तो भारतीय मूल के बहुत से लोगों ने भारतीय उच्चायोग का रुख किया था।

अब तक पराऐ!
कीनियावासी काले लोगों की ये भी शिकायत है कि भारतीय मूल के लोग अपने बच्चों को भी स्थानीय काले लड़के-लड़कियों से ज्यादा मेलजोल बढ़ाने से मना करते हैं, शादी तो बहुत दूर की बात है। कुछ महीने पहले कीनिया के एक लड़के के भारतीय मूल की एक लड़की के साथ संबंधों पर बवाल खड़ा हो गया था।
ज्यादा जानकारी के लिए मैं नैरोबी विश्वविद्यालय पहुँचा और मैंने कुछ काले नौजवानों से पूछा कि क्या उनकी भारतीय मूल की कोई महिला मित्र है, या कोई भारतीय मूल का नौजवान किसी काली लड़की को जीवनसाथी बनाना चाहेगा? उनका कहना था कि वे जरूर चाहेंगे कि कोई भारतीय लड़की उनकी महिला मित्र बने, लेकिन उन्हें पता है कि लड़की के माता-पिता को ये बात पसंद नहीं आएगी। उनका ये भी कहना था कि जब किसी क्लब में भाँगड़ा पार्टी होती है तो भारतीय मूल के नौजवान एक गुट में रहना पसंद करते हैं।विश्वविद्यालय में हमारी मुलाकात हुई मेडिकल छात्रा लॉरेन से। लॉरेन ने हमें बताया कि उनका पहले एक कीनियाई मूल का पुरुष मित्र था, लेकिन इससे उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई। उनका कहना है कि ये सच है कि भारतीय संस्कृति में ढेर सारे प्रतिबंध हैं। वो कीनिया में पली-बढ़ीं हैं और खुद को पहले कीनिया का ही मानती हैं।

दरक रहीं हैं दीवारें :
लॉरेन के दोस्त सुहेल की महिला मित्र एक कीनियाई काली लड़की है और वो उससे शादी करना चाहते हैं। वो मानते हैं कि एशियाई लोग अलग गुटों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं और उन्हें नहीं मालूम कि ऐसा क्यों है। कीनिया में पले-बढ़े इन नौजवानों की सोच शायद अपने माता-पिता या दादा-दादी से अलग है।हम जा पहुँचे ईस्ट एफएम जो नैरोबी का एक प्रसिद्ध एशियाई रेडियो स्टेशन है। इस स्टेशन के मालिकों ने कुछ साल पहले मिस इंडिया कीनिया प्रतियोगिता शुरू की थी। ईस्ट एफएम के सीनियर प्रजेंटर गुरप्रीत ने बताया कि उनके कार्यक्रम में कई एशियाई लड़कियाँ फोन करके पूछती हैं कि वो किसी कीनियाई काले पुरुष के प्रति आकर्षित हैं और वो क्या करें। गुरप्रीत कहते हैं कि ये एक संवेदनशील मुद्दा है। अपने कार्यक्रम में वो अपने सुनने वालों से आग्रह करते हैं कि वो जवाब दें। उधर, भारतीय मूल के लोगों का कहना है कि उनका संपर्क काले समुदाय के लोगों से है तो, लेकिन शादी-ब्याह कुछ अलग-सी बात है।अफ्रीका हिंदू काउंसिल के अध्यक्ष मूलजीभाई पिंडोलिया कहते हैं कि काले कीनियाई लड़कों और भारतीय मूल की लड़कियों के बीच शादी कैसे हो सकती है। वो कहते हैं कि अधिकतर कीनियाई पुरुषों की एक से ज्यादा पत्नियाँ होती हैं क्योंकि कीनियाई समाज में एक से ज्यादा शादी की इजाजत है।
भारतीय मूल के लोग कहते हैं कि उन्होंने कीनिया के लिए बहुत कुछ किया है और उन्हें किसी समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराना एक आसान रास्ता है।

Monday, November 3, 2008

जीना इसी का नाम है...


मनोज कुमार राठौर
जिंदगी के लिए आदर्श बनी
हारी जिंदगी को भी जी गई
अपनी अभिनव ,कलाओं से
वह आसमान को छू गई
ऐसे आगे बढ़़ते रहना ,सिर्फ तुम्हारा काम है
जीना इसी का नाम है-2...
देश के एक छोर से
एक नई रोशनी फूटी थी
एक नई किरण ले नया संदेशा
अग्निबाण सी छूटी थी
एक नई हवा ले ,नया राग ले
कुछ गाना ,जिसकी शान है
जीना इसी का नाम है-2...
पवन रोकती है मार्ग तुम्हारा
सरिता सा कारवा तुम्हारा
आशा की धारा हो तुम
कोई क्या रोकेगा ,इस लहर को
जो इस देश की आन है
जीना इसी का नाम है-2...
अम्बर से उतरी हो तुम
जीवन देने की मरू राहों में
नील गगन की परिवन के तुम
ज्ञान लुटाओ, चहूं दिशाओ में
तुम्हारे नाम से हमें अभिमान है
जीना इसी का नाम है-2...
तुफान थम गया स्वागत में
चारों मौसम राहांे में
तम के बादल छंटने लगे है
तुम्हें क्षितिज तक जाना है
गति जीवन की कभी न हो कम
इसका रखना तुम्हें ध्यान है
जीना इसी का नाम है-2...