नाम - गिरराज
उम्र - 8 साल
कसूर - भारत मां की जय
मनोज कुमार राठौर
भारत देश की स्वतंत्रता में कई देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहूती दे दी। जब गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है तो देश के हर एक नागरिक के मन में देश भक्ति की लहर दौड़ने लगती है। भारत 200 साल की गुलामी के बाद आजाद हो पाया था। इन 200 सालों की लड़ाई में कई देशभक्त शहीद हो गए। इन देशभक्तों में भारत मां के सपूत कहे जाने वाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नाम भी प्रचलित है। इन सभी देशभक्तों का नाम आज हर एक भारतवासी की जुबान पर है। भारत के इतिहास में कही न कही इन शहिदों का जिक्र मिलता है। मगर इनके अलावा ऐसे भी देशभक्त हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई, परन्तु इतिहास में इन शहीदों का नामों निशान तक नहीं है। ऐसे देशभक्तों में यदि 8 साल का बच्चा शामिल मिल हो तो हम सबको आष्चर्य होगा, लेकिन यह सत्य है। आंखों को भिगाने वाली यह दास्तान इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है। यह हमारा दुर्भाग्य कहे या फिर गलती। यह तो इतिहासकार ही बता सकते हैं।
सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश में सन् 1900 में आजादी की लहर चल रही थी। इसी दौरान एक अंग्रेज लार्ड विलियम बैटिक के पास एक नन्हा बालक गिरराज काम करता था। उस समय गिरराज की उम्र करी 8 साल रही होगी। गिरराज आए दिन क्रंातिकारियों की बाते सुनता था। वह गली से निकलने वाले क्रांतिकारियों के नारे और उनकी बुलंद आवाजों को सुनकर उसे ऐसा महसूस होता की वह उस क्रांतिकारी दल का नेतृत्व कर रहा हो। मगर एक मामूली सी नौकरी करने वाला आठ साल गिरराज आखिर कर भी क्या सकता था। आजादी का ज़ज्बा उसके दिल दिमाग में उमढ़ने लगा के साथ देश को आजादी दिलाने के ख्याल उसके मन में आने लगे। गिरराज बचपन से एक सच्चा देश भक्त था। उसके अंग-अंग में देशभक्ति का खून दौड़ रहा था, लेकिन उसकी उम्र इतनी अधिक नहीं थी कि वह क्रंातिकारी बन पता। घर से धनवान भी नहीं था कि साले गोरों का विरोध कर सके। नन्हा बालक तो अपने पेट को पालने के लिए लार्ड विलियम के पास नौकरी करता था। झाडंू, पौछा लगाने वाला एक साधारण सा बालक अग्रंेज लार्ड विलियम बैटिक का विरोध कैसे करता। इसके बावजूद उसके मन में अपने देश के प्रति अटूट श्रद्धा थी। विलियम किसी काम से बाहर गया हुआ था। गिरराज घर में अकेला था। देशभक्ति धून में उसने विलियम के घर की दीवारों पर भारत मां की जय लिख दिया ।लंबे समय से बाहर होने के कारण विलियम को यह बात पता नहीं थी। मगर कहते हंै कि सच एक न एक दिन सामने आ ही जाता है। आखिरकार जब विलियम घर लौट कर आया तो दीवारों का दृष्य देखकर गुस्से से लाल-पीला हो गया। आंखों में गुस्सा झलक रहा था। ऐसा लगता था कि वह उसे गोली से उड़ा देगा। लेकिन यदि वह ऐसा कैसे कर सकता था क्योकि उसे नौकर कहां से मिलता। लार्ड विलियम के दिमाग में यह बात बैठ गई कि जो बालक बचपन में अपने देश से इतना प्यार करता है, तो जब बड़ा होगा तो क्या करेगा। विलियम ने गिरराज से इस गलती के लिए माफी मांगने को कहां, लेकिन गिरराज माफी कहां मांगने वाला था। उसने विलियम से कहा कि जो मैंने लिखा वह सत्य है। इसमें माफी मांगने का सवाल ही नहीं होता। गिरराज अपनी बात पर अटल था। लार्ड को उसकी जिद रास नहीं आई और उसने 8 साल की मासूम सी जान पर कोढ़े बरसाने का आदेश दे दिया। नन्हे बालक को भारत माता के सम्मान के लिए कोढ़े सहना मंजूर था। लेकिन उसे गोरों के सामने सिर झुकाना कदाचित स्वीकार नहीं था। किसी ने सही कहा था कि सर काटा सकते हैं, लेकिन सिर झूका सकते नहीं। आज यह पंक्तियां याद आती है। कोढो की दर्दभरी मार गिरराज सहन नहीं सका और इस नन्हें बालक ने जमीन पर दम तोड़ दिया। इस नन्हें देष भक्त ने अपने देश के सम्मान के खातिर अपना बलिदान दे दिया और भारत मां के दूध का कर्ज चुकाया। इसे हमारा दुर्भाग्य या फिर इतिहासकारों की गलती कह सकते हैं कि आज भारत के इतिहास में इस नन्हे बालक का इतना बडा बलिदान दर्ज नहीं है।
भूल न जाओं उनको
जरा याद करो कुर्बानी
ऐ मेरे वतन के लोगों...
सिर्फ इतना कहूंगा कि ऐसे ही लालों के कारण आजादी मिली जिसका फायदा मक्कारों ने उठाया.
ReplyDeleteमुखौटा बनना हर कोई पसंद करता है, पर हम वो हाथ बने जो काम करता है, मन में समर्पण का भावः हो ना की प्रदर्शन का ,हम भी गिरिराज के जैसे ही भारत के सामान्य पर महत्वपूर्ण अंश है,
ReplyDeleteहम इस क्रन्तिकारी बालक को मन में संजोये .