Friday, August 21, 2009

जब कोई बच्चा ट्रेन में नजर आता है...

झुक-झुक करती ट्रेन
सीटी मारती
नौनिहाल की मासूम जिंदगी
पुकार लगाती
उनका दर्द देख दिल भी रोता
जब कोई बच्चा भूख से दम तोड़ता है।

रोलिया नसीब नहीं
जीवन में
घरों से कचरे में फेंके देते
मासूमों को
मन भी दुखी हो जाता
जब कोई बच्चा ट्रेन से कट जाता है।

जन्म से कोई नहीं
रिश्ते मर गए
बचपन कब बड़ा हुआ
सोचते थक गए
देख यह दृश्य शर्म आती
जब किसी बच्चे की आंखें भीग जाती है।

शिक्षा मिली
भिख मांगने की
सारी जिंदगी
स्टेशनों पर गुजारी है
मेरा मन भी दहल जाता
जब कोई बच्चा ट्रेन में नजर आता है।

मनोज राठौर

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