Wednesday, October 8, 2008

ममता की करनी, सिंगुर को पड़ी भरनी










राजनीति की बत्तर हालत के जिम्मेदार कौन?
मनोज कुमार राठौर
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और तृणमुल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बेनर्जी की राजनीति ने सब कुछ मिट्टी में मिला दिया। जहां एक ओर सरकार किसानों को विश्वास दिलाने मे विफल रही, वहीं दूसरी ओर ममता बेनर्जी ने किसानों का विश्वास तो जीता, पर राज्य की तरक्की पर अकुंश लगा दिया। दोनों तरफ से नकारा कोशिश की गई। कोई भी रतन टाटा की नैनो परियोजना को नहीं रोक पाया। अब पश्चिम बंगाल की छवि धूमिल हो गई है। सिंगुर की तो छोड़ो पश्चिम बंगाल के किसी भी ईलाके में कोई भी कम्पनी निवेश करने में दस बार सोचेंगी।

बुद्धदेव भट्टाचार्य आखिर रतन टाटा को नहीं मना सकें। उनके द्वारा की गई सैंकड़ों मीटिंग का कोई नतीजा नहीं निकला। बेचरे क्या करते उनकी टांग तो ममता जी खिंच रही थी। चलो माना कि ममता बेनर्जी किसानों की हित की बात कर रही है पर इस हित के पीछे उनका भी वोट हित छिपा है। बहनजी ने रतन टाटा को नौ दो ग्यारहा कर दिया पर शायद वह इस बात से अनभिज्ञ है कि किसी राज्य की तरक्की में उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कितनी इनवेस्ट मीटिंग रखी और अपने राज्य में सभी कम्पनी को निवेश करने के लिए आंमत्रित किया। मध्य प्रदेश के विकास के लिए वह नैनो परियोजना को भी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे। पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने राज्य के विकास के लिए पहला कदम बढ़ाने की कोशिश अवश्य की, पर वह उसमें असफल रहें। कारण साफ है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति जनता में विश्वास पैदा नहीं कर पा रही है।

नैनो परियोजना के लिए बुद्धदेव ने 1000 एकड़ जमीन और श्रेष्ठंतम रियायते दी थी। बुद्धदेव चाहते थे कि टाटा की इस परियोजना से उनके राज्य की स्थिति सुधरेगी और बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा, लेकिन वह किसानों की मांग और उनके विश्वास पर खरा नहीं उतर सकें जिसका फायदा ममता बहन ने ले लिया। नैनो फैक्ट्री 300 एकड़ जमीन पर स्थापित हो चुकी थी लेकिन उसके कल-पुर्जे बनाने के लिए 1000 एकड़ जमीन की ओर आवश्यकता थी। किसान भाईयों को सरकार बाजार मूल्य से भी अधिक कीमत देने को तैयार थी। रतन टाटा किसानों की मांगों को पूरी नहीं कर पर रहे थे। किसानों ने सरकार के सामने अपनी मांगों को लेकर प्रस्ताव भी रखा परन्तु इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया, जिससे किसान नाराज थे। ममता ने किसानों के जख्म पर मलम लगाते हुए उनका साथ दिया और अंसन पर बैठ गई। ममता का जन आंदोलन बिकराल रूप धारण करने लगा, जिसको देखते हुए रतन टाटा ने किसानों की 150 एकड़ जमीन वापस की। इसके बाद भी आंदोलन थमने को नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे हालात में नैनो परियोजना प्रांरभ करना संभव नहीं था इसलिए रतन टाटा के सामने सिंगुर से नैनो परियोजना को हटाने के अलावा कोई विकल्प शेष बचा नहीं।

1500 करोड़ के निवेश के बाद भी हालात में सुधार नहीं आ रहा था इसी कारणवश रतन टाटा ने अपनी नैनो परियोजना गुजरात में लगाना का फैसला लिया। अब नैनों ने सिंगुर के किसानों और वहां की राजनीति से टाटा कर लिया और गुजरात का दामन थाम लिया। पश्चिम बंगाल नाम पर जो कालिख पुती है उसको मिटाना असंभव है।

विफल राजनीति का उदाहरण है
पश्चिम बंगाल...?

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