Wednesday, November 19, 2008

तू लिख, तुझे कौन मना करता है...


मनोज कुमार राठौर

1
उठा कलम जरा कुछ लिख दे
तेरी लिखाई में खुदा बसता है
कलम की नौक पर सच की धार चला
तू लिख, तुझे कौन मना करता है।
2
हर शब्द में ताकत भर दे
तेरी शब्दों में भगवान बसता है
नीम से शब्दों को शहद लगाता चल
तू लिख, तुझे कौन मना करता है।

3
लेखक तू है, सब जग जाने
कलम तेरी है, सब जग माने
काहे तू फिर डरता है
तू लिख तुझे कौन मना करता है-2

10 comments:

  1. शब्दों की ताकत का अहसास...ही सृजन की ओर लेकर चलता है। बधाई!

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  2. नीम से शब्दों को शहद लगाता चल
    तू लिख, तुझे कौन मना करता है।
    वाह...बड़े हुनर का काम है ये...और आप ने क्या खूब किया है...बधाई...
    नीरज

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  3. हर शब्द में ताकत भर दे
    तेरी शब्दों में भगवान बसता है
    नीम से शब्दों को शहद लगाता चल
    तू लिख, तुझे कौन मना करता है।

    बहुत खूब.बधाई स्वीकार करे

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  4. आप लिखते रहो, कोई मना नहीं करता. बढ़िया रहा.ईमेल से यदि पूरी कविता बता दोगे तो फिर ब्लॉग पर आने कि आवश्यकता क्या रहेगी?
    http://mallar.wordpress.com

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  5. बिल्कुल सही बात कही आपने, 'तू लिख, तुझे कौन मना करता है'.
    शब्दों में बहुत ताकत होती है, उसे पहचान और लिख, तुझे कौन मना कर सकता है?

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  6. bahut khoob........
    ek shakti ka sanchar hota hai aapki panktiyo se........

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