Saturday, September 20, 2008

व्यंग्य

आओ सिखाएं

तुम्हें पोटे का पोटा..

मनोज कुमार राठौर
पोटा कानून को लेकर कर पार्टी आमने-सामने हैं। यह वह पोटा है जिस पर सभी राजनीति दल अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। हां मैं बात कर रहा हूं आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) की जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल से अभी तक अधर में है। आतंकवाद से निपटने के लिए बनाए गए इस कानून की तो मिट्टीपलित हो रही है। अब तो ऐसा लगता है कि पोटा न तो घर का है और न ही घाट का। उसका तो भगवान ही मालिक है। राजनीतिक पार्टियां तो यही चाहती है कि पोटा का ताज उनके सिर पर सजे। पर शायद इस पोटा-पोटा की रट में तो उसका आस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। हाए रे यह पोटा, किस ने बनाया यह पोटा, यह सवाल सभी के मन में है। जब पोटा का प्रयोग ही नहीं किया जा रहा तो यह पोटा कानून हमारे लिए बेकार है। पोटा के रचियता यह भूल गए थे कि यह पोटा आखिर क्यों बनाया गया।
पोटा का चलन तो हमारे गृहमंत्री साहब के कपडे़ के समान बदल रहा। सरकार आतंकवाद के लिए नए कानून की बात कर रही है। अब ऐसा लगता है कि पोटा का काम समाप्त हो गया है। यह तो वहीं बात हुई खाया पिया कुछ नहीं और गिलास फोड़ा आठाना। जब पोटा कानून बनाया गया है तो उसे लागु करना चाहिए न कि उसे संविधान की विरासत में सजा कर रखना चाहिए। जहां एक ओर हम आतंकवाद को समाप्त करने की बात करते हैं तो दूसरी ओर उसे पनहा भी हम देते हैं। हमारी सरकार पोटा कानून लागू करने में असमर्थ है। पर उसकी बहादुरी भी तो देखो की वह आतंकवाद के लिए नया कानून बना रही है। हमारी प्रिय सरकार जब आतंकवाद निरोधक कानून पोटा लागू करने में सकक्षम नहीं है तो क्या खाक इस नये कानून को लागू करपाएगी।
किसी ने सही कहा है कि दो पत्नियों से तो अच्छा एक का होना सही है। क्योंकि हमें एक तरफ से प्रताड़नाएं मिलती है न कि दोनों तरफ से। भारत सरकार एक कानून का पालन तो सही तरह से नहीं कर पर रही है और अब नया कानून बनाने चली। सरकार को गिराने के लिए अन्य राजनैतिक पार्टी इसको अपना चुनावी मुद्दा जरूर बनाएगी। राजनीतिक की इस घमासान में नुकसान तो आम जनता का है। सरकार तो यह समझती है कि जब भी आतंकवादी देश में पटाखे फोड़े है तो उसका मुहावजा लोगों को मिले, पर मुहावाजा किसी की जान की कीमत नहीं है। जब किसी मां के बूढ़ापे का सहारा उससे छिन जाता है तो उसका दर्द वह जिंदगी भर झेलती है क्या किसी को इसका अंदाजा है?

मालवी भाषा में पोटा का अर्थ होता है गोबर। भारत में गोबर के कण्डे का बहुत चलन है। जिसके पीछे कभी-कभी लड़ाई भी हो जाती है। मोहल्ले की गली में यदि गोबर पड़ा है तो मोहल्ले के कई लोग आपस में झगड़ने लगते हैं, जिसमें एक बोलता है कि यह मेरा गोबर है, तो दूसरा कहता है कि इस पर मेरा अधिकार है। सभी को मालूम है कि गोबर से कण्डे बनाए जाते हैं। पर यह बात मुझे हजम नहीं होती कि इस गोबर के लिए आखिर लोग क्यों लड़ते हैं। जी हां मेरा इसारा उन राजनीति पार्टियों की तरफ है जो इस गोबर को लेकर लड़ रहे हैं। इस गोबर के पीछे आखिर लड़ाई क्यों की जाती है। यह गोबर (पोटा) किसी के भी पास जाए। लक्ष्य यही होना चाहिए की इसका कण्डे अवश्य बने। नेताओं ने तो इतनी टुच्चाई दिखाई है कि इसको लेकर राजनीति कर रहे हैं। मैं तो सीधी बात करता हूं कि यह पोटा कानून किसी भी राजनीति पार्टी का ताज बने, पर शर्त इतनी सी है कि इस पोटा कानून को लागू भी करे, तभी मानेगें कि तुम मैं दम हैं। आतंकवादी एक के बाद एक तमाचे हमारी देश की जनता पर ही नहीं जड़ रहे हैं अपितू पूरे भारत देष में इस तमाचे की गूंज सुनाई दे रही है। सरकार के निकम्मेपन के प्रति आष्वस्त आतंकवादी हमला कर रहे हैं, जान-माल की नुकसान कर रहे हैं वो भी खुलेआम चुनौती देकर। वे जानते है कि यहां का हर पोटा अंततः कण्डे में तब्दील हो जाता है। जिसको लेकर राजनीति पार्टी कभी एकमत नहीं हो सकती है। इस देष में पोटा लागू करने की दूर की बात है यहां की खुफिया एजेंसी भी खोखली साबित हो रही हैं। सरकार पोटा की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रही, परन्तु वह अपने नये कानून रासुका की तरफ उसका ज्यादा ध्यान है। सरकार का कहना है कि रासुका कानून पोटा जैसा होगा। मैं तो साफ कहता हूं कि जब पोटा लागू करने में इनकी हवा निकल रही है तो यह रासुका कानुन क्या खाक लागू करेगें। आतंकवादियों के खिलाफ जब तक सरकार यह नया कानून लागू करेगी जब तक षायद आतंकवाद दूसरी घटना को अंजाम दे चूके होगें, अब काम पैसेंजर का नहीं है बल्कि सुपरफास्ट का है। मतलब है कि चटमगनी और पट विवाह।
जब आतंकवाद के लिए बार-बार कानून बनाए जाएगे तो उन सालों में खौफ कैसे पैदा होगा। वो तो ओर निर्डर हो जायेगे कि सरकार हमारे लिए नई योजनाएं बना रही है। अरी अंधी सरकार कुछ तो इन मासूम जनता का ख्याल रखो जो इन आतंकवादी घटना का शिकार हो रही हैं। तुम अपनी सरकार बचाने के लिए आतंकवादी को क्यों पनहा दे रहे हो। मैं तो एक स्वतंत्र पत्रकार हूं और मेरे यही विचार है कि इस गोबर को आतंकवाद के मंुह पर दे मारो ताकि वह भी समझ जाए कि भारत किसी से डरता नहीं है। सरकार को यदि आतंकवाद को जड़ से खत्म करना है तो उसे पोटा से भी बड़ा पोटा कानून बना कर लागू करना होगा।

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