केन्द्र सरकार ने प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों को राष्ट्रीय आपदा कोष से एक हजार करोड़ रुपए की राहत राशिऔर लगभग सवा लाख टन खाद्यान्न दिया, पर यह आवश्यकता के अनुरुप बहुत कम है। यह सही बात है कि बाढ़ग्रस्त इलाकों में सेना अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही है। सरकार के मुलाजिम मानवता के दर्द को समझते हैं, लेकिन सरकार ने एक बार मदद देकर शायद अपना हाथ पीछे कर लिया है। राहत समाग्री को लेकर बाढ़ पीडितों में अफरातफरी मची है। वे दिन-दिन भर आसमान की ओर टकटकी लगा कर देखते रहते है कि ऊपर से कोई राहत विमान आए और उनके लिए राहत की समाग्री नीचे फेंके। जब परमाणु करार समझौता पर एक बार फिर संकट की स्थिति आन पड़ी, तो सरकार का ध्यान तुरंत गया और परमाणु की डगमागाती नौका को किनारे लगाया। पर अब ऐसा लगता है कि सरकार इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए कोई खास रणनीति तैयार नहीं कर रही है। उत्तरी बिहार जलप्रलय से विलख रहा हैै। उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। ग्रामीण इलाकों से लेकर षहरों और राहत शिविरों से लेकर अस्पतालों तक व्यवस्थाओं का ऐसा आलम है कि बाढ़ पीड़ितों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। पीड़ितों की संख्या के अनुपात में राहत शिविरों की संख्या बहुत कम है। बाढ़ के समय सरकार अपने दायित्व को ठीक तरीके से नहीं निभा पा रही है, तो बाढ़ के बाद होने वाली समस्या का सामना कैसे करेगी? सवाल यह उठता है कि बाढ़ के बाद उन इलाकों का प्रतिस्थापन का कार्य और महामारियों से बचाव की व्यवस्था जैसी समस्या का सामना सरकार किस ढं़ग से करेगी? बिहार की इस विनाशलीला ने तो बाढ़ नियंत्रण और आपदा प्रबंधन-तंत्र दोनों की पोल खोल दी। राज्य सरकार यह कहकर अपना पलड़ा झाड़ रही है कि यहां हर वर्ष बाढ़ आती है और एक गरीब प्रदेष होने के कारण वह उससे बचने और पीड़ितों की मदद करने के पुख्ता इंतजाम करने में असफल है। इसीलिए बिहार सरकार केन्द्र सरकार का मुंह तक रही है। प्राकृतिक आपदा कुछ कहकर नहीं आती है। इसलिए यह किसी एक राज्य की आपदा नहीं है वरन् सम्पूर्ण भारत देष की आपदा और समस्या है। कोसी के इस कहर से सरकार को निज़ात दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिए। प्रलय की यह घड़ी इतिहास में दर्ज हो गई है। बाढ़ का मुख्य कारण नेपाल स्थित कुसहा बैराज बांध है। जिसके टूटने से यह परिस्थिति उत्पन्न हुई। सरकार को इस संदर्भ में नेपाल सरकार से विचार विमर्ष करना चाहिए और उसका पुख्ता इंतजाम भी करना चाहिए, ताकि इस विनाषमय कोहराम का मंजर दौबारा नहीं हो। इस संकट की घड़ी में ईमानदारी और सक्षमता का निर्वहन करते हुए निस्वार्थ भाव से सरकार को मदद करना चाहिए। इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए भारत के आम नागरिकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह खुलकर मदद के लिए सामने आए। सरकारी और गैरसरकारी दोनों संस्थाएं भी सहायता करें। यदि भारत का प्रत्येक नागरिक एक-एक रुपए भी देते हैं तो अरबों रुपए एकत्रित किए जा सकते हैं जो बाढ़ पीड़ितों के लिए वरदान साबित होगा। सरकार के अलावा भी यह हमारा मानवीय और देषहित के प्रति कर्तव्य बनता है कि बाढ़ के इस कोहराम से निपटने के लिए सभी भारतवासी दृढ़ संकल्पित ।
Friday, September 12, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment