Wednesday, September 24, 2008

आतंकवाद भाई


सुबह-सुबह घूमना स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक होता है। यह किसी से छिपा नहीं है। मेरे लिए तो और भी लाभदायक सिद्ध हुआ जब मेरी मुलाकात उस महानगुणों के
धनी से हुई । जो भी वार्तालाप हुई वह मैं अपने इस लेख के माध्यम से आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।

उस दिन हल्की-हल्की बूंदों की फुहार भरे मौसम को खुशनुमा बना रही थी। मैं प्रातः भ्रमण के लिए गया और अचानक मेरी नजर सड़क के किनारे पड़े एक व्यक्ति पर पड़ी वह एकदम सुस्त व बीमार सा लग रहा था। मेरे अन्दर का इंसान जाग उठा, मुझे उस पर दया आ गई। मैं उसके समीप जाकर उसे पुकारा और उसका नाम पता जानना चाहा, परन्तु वह इतना कमजोर था कि उसके मुंह से सही ढंग से कराह भी नहीं निकल रही थी। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे सहारा देकर उठाया और उसे पानी पिलाया।
अब कैसा लग रहा है भाई साहब उससे पूछा । बमुश्किल उसके मुंह से निकला ठीक हूं पहले से काफी बेहतर महसूस कर रहा हूं। मैंने उससे नाम तथा पता पूछा। पहले तो वह मेरे सवाल का जबाब नहीं दे रहा था फिर मेरे जोर देने पर कहने लगा कि रहने दो भई मेरा नाम पता जानने के बाद तुम मुझे गाली दोगे और घृणित नजरों से देखोगें, मैने उस आश्वासन दिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा मुझ पर विशवास करो। मेरे आश्वासन देने के बाद उसने कहा कि ठीक है अगर आप इतना जोर दे रहे हैं तो सुनिए मेरा नाम आतंकवाद आफगानी है। मैं शान्तचित होकर उसकी बातें सुन रहा था कि भई कहंा खो गए, मै आतंकवाद आफगानी हूं तुमने सही सुना । हां मेरा नाम आतंकवाद है समझे। मुस्कुराकर कहा आप अपनी बात जारी रखिए। वह मेरी तरफ मुंह फाडे़ देखने लगा और फिर मुझसे कहा आप मेरा नाम सुनने के बावजुद इतने शांत खड़े हैं। पर मुझे और ज्यादा जानने के बाद आप मुझे अगर मारेंगे नही ंतो गाली अवश्य देंगे। मैंने उसके परिवार और निवास स्थान के बारे में पूछा उसने कहा मेरे माता पिता क्रिमस्छा नफरत और जेहाद हैं और मेरे भाईयों के नाम हैं-अलकायदा, जैश-ए-मोहम्मद। मेरे ननिहाल अफगानिस्तान के पास तालिबान में है तथा मेरे पिता पाक के हैं। इसलिए मेरा बचपन ननिहाल और दादा-दादी के यहां गुजरा। मेरा लालन-पालन दोनों जगह सामन रूप से हुआ।

उसने अपना निवास स्थान बताते हुए कहा कि जावानी में कदम रखते ही अपने घर के बाहर निकला ताकि कुछ रोजगार की तलाश करके अपनी रोजी रोटी चला सकूं इसीलिए मैं भारत अर्थात आपके देशआ गया। मैं सबसे पहले पंजाब गया और वहां पर 10-15 साल तक काम किया, उसके बाद मैं ठंडी वादियों की सैर करने के इरादे से जम्मू-कश्मीर की ओर आ गया और अभी भी वहीं पर हूं।
मैंने उससे कहा कि फिर आज आप यहां कैसे पहंुच गए। उसने बताया कि मुझे एक ही जगह पर रहते-रहते काफी दिन हो गए थे तो मैंने सोचा कि चलो थोड़ा आबोहवा बदली जाए लहरों में अठखेलियां करने के लिए आ गया, फिर सोचा कि इस देश के उद्योग धंधे देख आऊं इसीलिए मैं बंगलुरु और गुजरात गया और अब यहां झीलो की नगरी भोपाल आया । मुझे याद आया कि अभी कुछ समय पहले वाराणसी और जयपुर में भी आतंकवाद नाम के दर्शन हुए थे। उसने मुझसे कहा कि मैनें अपनी तरफ से बहुत कोशिश की तुम हिन्दुस्तानियों को अलग करने कि कभी सम्प्रदाय के नाम से कभी मंदिर- मस्जिद के नाम पर, लेकिन तुम लोंग कभी भी अलग नहीं हुए । तुम हिन्दुस्तानियों को कुछ समय के लिए आपस में लड़ाकर मै खुश हों जाता था पर पता नहीं ऐसा क्या है कि तुम लोंग कुछ समय बाद फिर एक साथ हो जाते हों।

मैंने आतंकवाद को सहारा देकर कहा कि उठकर खडे़ हो जाओ भाई। वह थोड़ी हिम्मत करके मेरा हाथ पकड़कर खड़ा हुआ। मैंने उसे समझाया देखो भाई अगर तुम्हें हम हिन्दुस्तानियों के दिलों में दहशत पैदा करनी है तो तुम्हें एक आसान तरीका बताता हूं। उसके चेहरे पर एक चमक आ गई उसने कहा भाई जल्दी बताओ क्या है वह तरीका, मैंने कहा इसके लिए तुम्हे एक-एक मां की गोद सूनी करनी होगी, पत्नी की माँग, भाई की कलाई सूनी करनी होगी। वह बोला यह तो बहुत मुश्किल काम है। मैं उसके हताशा को सुन रहा था। मैंने उससे कहा कि भई देखो तुमने इतनी मेहनत की और इस देश को तोड़नें की पुरजोर कोशिश की, कभी जातिवाद के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर, लेकिन आपने कभी सोचा कि फिर ऐसी कौन सी बात है कि आप लोग कभी सफल नहीं हो पाए है।मैं उसे समझा रहा था कि अचानक मेरे पीछे की तरफ से एक फुटबाल आतंकवाद को लगी और वह एक कटे पेड़ की भांति जमीन पर गिर गया। मैंने कहा कि संभालकर भाई साहब और देखा कि एक सात-आठ साल का बच्चा दौड़ता हुआ आया व मुझसे कहने लगा कि भइया मुझे माफ कर दीजिए ये फुटबाल मेरी है और मैंने मारी थी। मैंने कहा कि बेटा तुम्हारी फुटबाल मुझे नहीं बल्कि इन साहब को लगी है, वह बच्चा आतंकवाद की ओर मुखातिब होते हुए कहा अंकल मुझे माफ कर दीजिए। मंैने कहा बेटा इनका नाम आतंकवाद है,उस बच्चे ने मुस्कराते हुए कहा कि सारी आतंकवाद अंकल और अपनी मासूम आवाज में कहने लगा मेरी गलती नहीं है, उधर देखिए वो तीनों मेरे दोस्त है असलम, सुखविन्दर और पीटर उन्होंने फुटबाल के कारण मुझसे लड़ाई करना शुरू कर दी और मैं गुस्से के कारण फुटबाल में लात मार दी। मैने उसके सिर पर हाथ रखते हुए बड़े प्यार से पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है उसने कहा विजय फिर मैने कहा अच्छा बेटा जाओ उसने साॅरी कहा फिर चला गया।आतंकवाद ने मुझसे कहा भाई साहब यह बच्चा मेरा नाम जानने के बावजूद मुझसे बिना डरे साॅरी कहकर चला गया। मैंने उसे समझाते हुए कहा कि दरअसल में भाई साहब बात ऐसी है कि इन बच्चों को इनके माता-पिता ने ऐसे संस्कार दिए है कि वो लोग किसी से भी गुस्ताखी नहीं कर सकते चाहे वह उनका दुश्मन ही क्यों न हो। मैंने आतंकवाद से कहा कि भाई साहब मैं आपका एहसानमंद हूं। अरे नहीं मैं बस क्या सारा देष आपका आभारी रहेगा, आतंकवाद आफगानी मेरा मुंह ताकने लगा वह बोला क्यों मैंने ऐसा क्या कर दिया कि सारा देश मेरा आभारी रहेगा। मैंने उससे कहा कि आप हम भारतीयों का एकता का मंत्र देते हो उन्हें मोतियों की भांति एक माला में पिरोकर रखते हो, जब कभी हमारे देश में कहीं भी बम विस्फोट हो या दंगे फसाद होते है उसी समय हमें अपने भारतीय होने का एहसास होता है हमारे संस्कार रीति रिवाज और अपनत्व की भावना अपने कर्तव्यों का बोध होता है हिन्दू मुसलमान के बच्चों को अपना खून देता है तो मुसलमान अपने भूखे बच्चे के सामने से भोजन की थाली खिसकाकर एक हिन्दू बच्चे को दे देता है।ष्यहां पर हिन्दू रमजान के पावन पर्व में रोजा रखता है तो मुसलमान नवरात्र में, हिन्दू ताजिया में जुलूस निकालते हैं तो मुसलमान जगन्नाथ भगवान का रथ खीचते हैं जानते हो ये सब क्यों करते है क्योंकि वे एक भारतीय हो जाते हैं। वे हम हो जाते हैं हम का अर्थ हिन्दू मुसलमान है और तुम्हारे इन अत्याचारों का मुकाबला कोई एक संप्रदाय नहीं करता बल्कि हम (हिन्दू,मुसलमान,सिख,ईसाई) करते हैं मेरी ऐसी बातें सुनकर आतंकवाद की आंखों से आंसू बहने लगे उसे देखकर मेरा भी गला रूआंसा हो गया। वह धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए जाने लगा और मंै उसे रूआसे स्वर में भाई साहब कहकर पुकारता रहा। मैं मजबूर था मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता था।

आतंकवाद के जाने के बाद मैंने अपने आंसू पोछे तथा सोचने लगा कि उस महान आत्मा के साथ कोई अनुचित व्यवहार तो नहीं किया बताओ बेचारा मेरे कारण हुए चला गया मै अपने कहे गये षब्दों में खोया था और सोच रहा था कि क्या वाकई में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हम खडे़ हैं मैं यही सोचते हुए पीछे मुड़ा ही था कि मैंने देखा वही फुटबाल खेलने वाले बच्चे मेरे पीछे खड़े थे और मुझसे कहने लगे कि भइया आतंकवाद आफगानी का मुकाबला करने के लिए आप अकेले नहीं हैं, आपके साथ हम खड़े हैं सच ही तो कहा उन बच्चों ने क्योंकि यही तो भविष्य हैं हमारे देश के। अगर ये बच्चे आतंकवाद के खिलाफ खड़े हैं तो क्या मेरे देश के युवा नहीं? मैं इसका जवाब अपने युवा भाइयों से जानना चाहूंगा। अपने देश से अगर आतंकवाद आफगानी को भगाना है तो हम सभी को एक साथ इसका मुकाबला करना होगा। केवल एक दो लोगों के लड़ने से ही यह समस्या हल नहीं होगी।
यह लेख मेरे घनिष्ट पत्रकार मित्र अश्वनी प्रभात शर्मा द्वारा लिख गया है।


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