Tuesday, September 30, 2008

कुपोषण बनी देशव्यापी समस्या


मनोज कुमार राठौर
आजादी के 60 साल के बाद भी हमारे नौनिहाल भूख और कुपोषण से दम तोड़ रहे हैं। कुपोषण का कहर तेजी से फैल रहा है आए दिन कुपोषण के कारण कई मासूम बच्चों की जान जा रही है। प्रदेष के सतना, ग्वालियर, छिदंवाड़ा और विदिषा में कुपोषण के कई मामले सामने आए। इन क्षेत्रों के अलावा भी भोपाल में 700 से अधिक बच्चे कुपोषण का षिकार हैं और उनमें से तीन दर्जन बच्चे गंभीर है। यह समस्या राज्य तक सीमित नहीं है, अब तो यह पूरे देश में अपना घर बना रही है। इसके लिए हमारी सरकार और लोगों को कमर कसना पड़ेगी।
नौनिहाल की मृत्यु दर दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सरकार प्रयास तो कर रही है परन्तु इस पर रोक लगाने में असमर्थ दिखाई देती है। कुपोषित बच्चों के लिए सरकार कई जगहों पर कुपोषण केंद्र तो खुलवाए हैं, लेकिन वहां की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है कि बच्चों को अच्छा ईलाज मुहैया कराया जा सके। जिलों के कई पिछड़े क्षेत्रों में ईलाज के लिए बच्चों को कुपोषण केंद्रों में नहीं लाया जाता है। पिछड़े क्षेत्रों के लोगों को डाॅक्टरी की परिभाषा तक नहीं पता। वह तो झाड़ा फंूकी पर विश्वास रखते हैं। लोगों की अंाखों पर से अंधविष्वास की काली पट्टी को हटाना पडे़गा। इसके लिए सरकार को आगंनबाड़ी के कार्यक्रताओं और स्वास्थ्यकर्मीयों द्वारा लोगों को जागरूक करना चाहिए। इस संदर्भ में कई योजना भी बनानी चाहिए, ताकि कुपोषित बच्चों का समय पर ईलाज हो सके।
जिस तरह पोलियों को समाप्त करने के लिए सरकार दृढ़ संकल्पित हुई थी। उसी प्रकार इस पर भी ध्यान देना चाहिए। कभी तो कुपोषण ग्रस्त ईलाकों की संख्या कम हैं। यदि इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह भी पोलियों की तरह पूरे देश की समस्या बन जाएगी। हमारे देष में कुपोषित बच्चों की संख्या 1998-1999 में 53.5 की तुुलना में 2005-2006 में 60.3 फीसदी हो गई है। बच्चों पर यह बीमारी अपना घर बना रही है। मध्यप्रदेश के अलावा भी देश के कई राज्यों में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। हालांकि हमारा स्वास्थ्य विभाग इस विषय पर लोगों को जानकारी देता है। पर सरकार के अलावा भी लोगों का कर्तव्य बनता है कि इस पर ध्यान दे। जिस तरह यह कुपोषण बच्चों में फैल रहा है उसको देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को ओर अधिक सतर्क हो जाना चाहिए। जिले के सरकारी आकंड़ों की माने तो अब भी 289 गंभीर कुपोषित बच्चें जीवन-मृत्यु से जूझ रहे हैं। तथापि इस साल की शुरूवात में कुपोषण एक फीसदी कम हुआ है। पर क्या यह एक फीसदी हमारी सफलता है? सतना जिले के कई ब्लाकों में कुपोषित बच्चों के मामले सामने आए हैं। सतना के अलावा भी कई जिले मे कुपोषण की काली छाया का प्रकोप है। आज के इस वैज्ञानिक युग में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का ईलाज है, तो फिर यह तो एक छोटी सी बीमारी है। कुपोषण पर राज्य सरकार के अलावा केंद्र सरकार को भी गंभीर होना चाहिए।

No comments:

Post a Comment