
Wednesday, November 19, 2008
तू लिख, तुझे कौन मना करता है...

Tuesday, November 18, 2008
मालेगांव मामले में एटीएस का रवैया ढिला!
की पेसी पर पेसी कराई जा रही है। इन पेसियों का अभी तक कोई निर्णय नहीं निकला। अब तो ऐसा लगता है कि एटीएस की टीम अंधेरें में तीर चला रही हो। एटीएस के अनुसार आरोपी पुरोहित ने 60 किलो आरडीएक्स सेना के डिपो में जमा नहीं किया था। इस आरडीएक्स का इस्तेमाल समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों में किया गया था, परन्तु इस मामले में सेना के वरिष्ट अधिकारियों का कहना है कि यदि जम्मू कश्मीर मंे आतंकवादियों से आरडीएक्स बरामद किया जाता है तो वह आर्टिलरी यूनिट के अधिकारियों के हवाले किया जाता है। बाद में इस आरडीएक्स को राज्य पुलिस को सौंप दिया जाता है। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित चूंकि मिलिट्री इंटेलिजेंस में तैनात थे, इसलिए उनके पास आरडीएक्स जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। इस मामले में तो मानो कानुन का सारेआम मज़ाक उडाया जा रहा है। यदि कर्नल की तैनाती में आरडीएक्स गायब हुआ है तो उसे सजा देना चाहिए और कर्नल मिलिट्री इंटेलिजेंस में तैनात थे तो उन्हें इस मामले से बरी किया जाना चाहिए। एटीएस के इस ढिले रवैये से ऐसा लगता है कि इस मामले के फैसले में वर्षों लग जाएगें।Saturday, November 15, 2008
हाईटेक हुआ चुनाव प्रचार
विकास की गंगा बहती गई, वैसे-वैसे राजनेताओं ने प्रचार के तौर-तरीके भी सीखें। आज हमारा देश चहूमुखी विकास कर रहा है और इस विकास के साथ राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के तरीकों में भी बदलाव किया। पहले जहां पार्टी चुनाव के प्रचार के लिए आम सभा का आयोजन रखती थी जिसमें लाखों लोग सिरकत भी करते थे। साईकिल, तांगे और बैलगाड़ियों से भी प्रचार किया जाता था लेकिन आज हवाई जहाज और चार पहिया वाहनों से प्रसार-प्रचार किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के स्टार प्रचारक शिवराज सिंह, बसपा प्रमुख मायावती और भाजशा की राष्ट्रीय अध्यक्ष उमा भारती भी हवाई जहाज से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अमेरीका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार-प्रचार तरीकों को भारतीय राजनीति में अपनाया जा रहा है। जहां दोनों दावेदारों ने डिजिटल मीडिया जैसे यू ट्यूब, ब्लाॅग, सोषियल नेटवर्क, आनॅलाइन पेटिषन्स, आॅनलाइन गु्रप्त, ई-मेल आदि का चुनाव प्रचार के लिए जमकर प्रयोग किया। भारतीय राजनीति पार्टियों में भाजपा ही इन हाईटेक संचार माध्यम का प्रयोग कर रहे हंै। Friday, November 14, 2008
औरत है तुझे औरत रहना है..
मनोज कुमार राठौरघर-द्वारे तुझे है रहना
अत्याचार तुझे है सहना
औरत है तुझे औरत रहना है...
पहले पति की बात सुनना
फिर बेटे की हरकत पर रोना है
औरत है तुझे औरत रहना है...
कितनी तू आवाज उठाए
यही देश का रोना है
औरत है तुझे औरत रहना है...
लोग उठाये तुझ पर उंगली
स्वच्छ नदी सी बहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...
तुझे जलाए लाख दबंगे
कष्टकारी पीड़ा सहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...
तू ही कल का भविष्य बनाए
जब भी लोगों यह कहना है
औरत है तुझे औरत रहना है...
Monday, November 10, 2008
विदेशों में भारतीयों की स्थिति

विदेशों में भारतीयों ने अपने देश का नाम रोशन किया है। जापान की एक पत्रिका में छपे आकड़ों के अनुसार विदेशों में लगभग 30 प्रतिशत भारतीय नासा में वैज्ञानिक, 20 प्रतिशत डाॅक्टर और 25 प्रतिशत अन्य कंपनियों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहंे हैं। मीडिया और सरकारी रिपोर्टो में छपे आकड़़़़ों में भारतीयों की उपलब्धियों को प्रायः रेखांकित किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीयों की स्थिति विदेश में दयनीय बनी हुई है। भारतीय विदेशी चमक-दमक में इतने डूब जाते हैं कि वह अपने देश को भी भूल जाते हैं। अधिकतम भारतीय विदेशों में काम करना पसंद करते हैं। भारतवासियों की धारा का प्रवाह विदेश की ओर है और वह तीव्र गति से इस ओर प्रस्थान कर रहे हैं।
ब्रिटेेन के नागरिक अप्रवासी भारतीयों को जिस छवि को प्रतिदिन देखते हैं उसें लेेकर उन्होंने अपनी-अपनी कुधारणाएं बना रखी हैं। गोरी चमड़़़ी के सिरमौर समझने वाले आकों को यह लगता है कि अप्रवासियों हमारी नौकरियां और रोजगार छीन रहे हैं। वहां भारतीयों की बढ़ती संख्या से उन्हें अपना देश भी अपना नहीं लगता है, इसलिए वह भारतीयों के साथ भेदभाव करते हैं। वहां भारतीयों सम्पत्ति का मूल्य गोरों की सम्पत्ति मूल्य के मुकाबले बहुत कम है। इससे अंदाजा लगाया जाता है कि ब्रिटेन में भारतीयों की स्थिति कैसी होगी?
विदेशों मेें भारतीयों पर अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन हमारी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। अमेरिका की एक जहाज निर्माण कम्पनी ‘सिग्नल इन्तरनेशनल ’ जो मिसीसिपी में स्थित है। करीब 100 भारतीय श्रमिकों ने कम्पनी के खिलाफ शोषण का आरोप लगाया था लेकिन कंपनी ने उनके इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया । उन्हंांेने इस संदर्भ में भारत सरकार से गुहार लगाई। भारत सरकार ने उनकी गुहार तो सुनी लेकिन उसे भी अनसुनी करने की भरपूर कोशिश की गई। भारत सरकार ने अपना एक दल अमेरिका जांच करने के लिए भेजा। अमेरिका गए दल ने जब भारत जाकर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें शोषण संबंधित मामले को गलत बताया गया था। रिपोर्ट में भारतीयों के शोषण की जानकारी को छूटी साबित कर दी गई। इस बात का खुलासा श्रमिक वर्ग के नेता ने करा, उन्होंने कहा कि भारतीय दूतावास द्वारा भेजी गई टीम केवल सिग्रलपरिवार में काम करने वाले मजदूरों से ही मिल कर लौट गई । वह अन्य भारतीय मजदूरों से नहीं मिली। भारत सरकार के भेजे गए इन नमूनों की इस गलती से ऐसा लगता है कि अमेरिका सरकार ने इन्हें खरीद लिया था इसलिए तो अधूरी जानकारी लेकर भारत लौट गए। हमारे देश के यह हौनहार दूतवास तो लौट आए मगर उन 100 भारतीयों का क्या होगा, जिनका शोषण किया जा रहा है! इसी प्रकार अमेरिका के अलावा भी कई देशों में भारतीयों की स्थिति ठीेक नहीं है।
सभी हमसफर जाते है
Wednesday, November 5, 2008
धर्म गुरू सवालों के बीच!

Tuesday, November 4, 2008
भारतीयों और कालों के बीच खाई!
भारतीय मूल के लोग ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंग्लैंड तक रंगभेद के ख़िलाफ़ आवाज उठाते नजर आते हैं लेकिन कीनिया के मूल निवासी भारतीय मूल के लोगों को शोषितों में नहीं शोषकों में गिनते हैं। कीनिया के मूल निवासियों का कहना है कि भारतीय मूल के लोगों ने उनका शोषण किया है, हालाँकि भारतीय मूल के लोग इस बात से इनकार करते हैं।अगर आप सड़क पर चलने वाले आम काले कीनियाई व्यक्तियों से बात करें तो भारतीय मूल के लोगों के बारे में आपको कुछ ज्यादा अच्छे विचार सुनने को नहीं मिलेंगे। एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि कुछ भारतीय तो अच्छे हैं, लेकिन सब वैसे नहीं हैं। उनमें लोगों का शोषण करने की मजबूत फितरत नजर आती है।
बुरा व्यवहार :
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि भारतीय मूल के लोग कीनिया में जाति व्यवस्था लाना चाहते हैं और उनका व्यवहार यहाँ के मूल काले लोगों के साथ बेहद बुरा है। यह भी सुना कि भारतीय मूल के लोग तो गोरे लोगों से भी बुरे हैं क्योंकि वो अफ्रीकी
लोगों को कम वेतन देते हैं, और उन्हें नीचा भी दिखाना चाहते हैं।करीब-करीब हर व्यक्ति से यही सुनने को मिला कि भारतीय मूल के लोग अपने सघन आबादी वाले इलाकों में रहते हैं और उनमें पार्कलैंड भी एक ऐसा ही इलाका है। भारतीय मूल के लोग आम तौर पर कीनियाई काले लोगों से दूरी बनाकर अपने ही लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं।कई लोगों का यह भी मानना है कि भारतीय मूल के लोग सिर्फ अपने मतलब के लिए स्थानीय काले लोगों के साथ व्यापार करते हैं। उनकी यह भी शिकायत है कि भारतीय मूल के लोगों का एक पाँव कीनिया में और दूसरा पाँव भारत में रहता है। अगर देश में कोई संकट आता है तो वो देश से रफूचक्कर होने की पहले सोचते हैं। दिसंबर 2008 में जब कीनिया में चुनाव के वक्त हिंसा भड़की थी तो भारतीय मूल के बहुत से लोगों ने भारतीय उच्चायोग का रुख किया था।
अब तक पराऐ!
कीनियावासी काले लोगों की ये भी शिकायत है कि भारतीय मूल के लोग अपने बच्चों को भी स्थानीय काले लड़के-लड़कियों से ज्यादा मेलजोल बढ़ाने से मना करते हैं, शादी तो बहुत दूर की बात है। कुछ महीने पहले कीनिया के एक लड़के के भारतीय मूल की एक लड़की के साथ संबंधों पर बवाल खड़ा हो गया था।
ज्यादा जानकारी के लिए मैं नैरोबी विश्वविद्यालय पहुँचा और मैंने कुछ काले नौजवानों से पूछा कि क्या उनकी भारतीय मूल की कोई महिला मित्र है, या कोई भारतीय मूल का नौजवान किसी काली लड़की को जीवनसाथी बनाना चाहेगा? उनका कहना था कि वे जरूर चाहेंगे कि कोई भारतीय लड़की उनकी महिला मित्र बने, लेकिन उन्हें पता है कि लड़की के माता-पिता को ये बात पसंद नहीं आएगी। उनका ये भी कहना था कि जब किसी क्लब में भाँगड़ा पार्टी होती है तो भारतीय मूल के नौजवान एक गुट में रहना पसंद करते हैं।विश्वविद्यालय में हमारी मुलाकात हुई मेडिकल छात्रा लॉरेन से। लॉरेन ने हमें बताया कि उनका पहले एक कीनियाई मूल का पुरुष मित्र था, लेकिन इससे उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई। उनका कहना है कि ये सच है कि भारतीय संस्कृति में ढेर सारे प्रतिबंध हैं। वो कीनिया में पली-बढ़ीं हैं और खुद को पहले कीनिया का ही मानती हैं।
दरक रहीं हैं दीवारें :
लॉरेन के दोस्त सुहेल की महिला मित्र एक कीनियाई काली लड़की है और वो उससे शादी करना चाहते हैं। वो मानते हैं कि एशियाई लोग अलग गुटों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं और उन्हें नहीं मालूम कि ऐसा क्यों है। कीनिया में पले-बढ़े इन नौजवानों की सोच शायद अपने माता-पिता या दादा-दादी से अलग है।हम जा पहुँचे ईस्ट एफएम जो नैरोबी का एक प्रसिद्ध एशियाई रेडियो स्टेशन है। इस स्टेशन के मालिकों ने कुछ साल पहले मिस इंडिया कीनिया प्रतियोगिता शुरू की थी। ईस्ट एफएम के सीनियर प्रजेंटर गुरप्रीत ने बताया कि उनके कार्यक्रम में कई एशियाई लड़कियाँ फोन करके पूछती हैं कि वो किसी कीनियाई काले पुरुष के प्रति आकर्षित हैं और वो क्या करें। गुरप्रीत कहते हैं कि ये एक संवेदनशील मुद्दा है। अपने कार्यक्रम में वो अपने सुनने वालों से आग्रह करते हैं कि वो जवाब दें। उधर, भारतीय मूल के लोगों का कहना है कि उनका संपर्क काले समुदाय के लोगों से है तो, लेकिन शादी-ब्याह कुछ अलग-सी बात है।अफ्रीका हिंदू काउंसिल के अध्यक्ष मूलजीभाई पिंडोलिया कहते हैं कि काले कीनियाई लड़कों और भारतीय मूल की लड़कियों के बीच शादी कैसे हो सकती है। वो कहते हैं कि अधिकतर कीनियाई पुरुषों की एक से ज्यादा पत्नियाँ होती हैं क्योंकि कीनियाई समाज में एक से ज्यादा शादी की इजाजत है।
भारतीय मूल के लोग कहते हैं कि उन्होंने कीनिया के लिए बहुत कुछ किया है और उन्हें किसी समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराना एक आसान रास्ता है।
Monday, November 3, 2008
जीना इसी का नाम है...

Monday, October 27, 2008
अमीरों की दीवाली, गरीबों का दीवाला
मनोज कुमार राठौर
हमारे देश में दीवाली का त्यौहार बडे़ धूमधाम से मनाया जाता है। बाजार में अनुमान से कहीं अधिक व्यवसाय होता है। मंदी के इस दौर में भी अरबों का कारोबार किया जा रहा है, लेकिन मंदी की गाज अमीरों पर नहीं गिरी, शायद दीवाली मनाने का हक उन्हे ही है। गरीबों का दीवाला निकल रहा है।
जहां एक ओर बाजार में सोना, चांदी, दो पहिया वाहन, इलेक्ट्राॅनिक सामान, कपड़ा, पटाखे, क्राकरी, फर्नीचर और सजावटी
सामान के अलावा प्रापर्टी की खरीदी हो रही है। दूसरी ओर किसी ने यह अंदाजा लगाया है कि यह खरीदी कौन कर रहा है? कोई आम आदमी तो यह खरीदी नहीं कर सकता है क्योकि वह दिन भर मजदूरी करता है जब जाकर उसका पेट भरता है। ऐसे में वह दीवाली कैसे मनाऐगां ? बस वह आसमान की आतिषबाजी को देखकर संतुष्ट हो सकता है। बाजारों में मिष्ठान भंडारों में तरह-तरह की मिठाईयां सजी होती है, बस वह उसकों एक नजर देखकर अपना जी भर लेगा। नये कपड़ों का सपना सजाए मन में वह उसकी कल्पना ही कर सकता है। गरीब व्यक्ति जब दिन भर काम कर अपना पेट पालता है तो वह दीवाली की इस चकाचैंद को कैसे पूरा कर पाएगा ? अब आप भी यह समझ गए होगें की दीपावी किस का त्यौहार है।मध्यप्रदेष में स्थित गंजबासौदा निवासी एक परिवार ने आर्थिक तंगी के परेशान होकर जहर खा लिया। परिवार में छः सदस्य थे सभी की मौके पर ही मौत हो गई। ऐसे ही कई उदाहरण है जिसमें लोग आर्थिक तंगी के चलते अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पाते हैं और उनके सामने आखिरी रास्ता मौत का बचता है। इस आर्थिक मंदी के चलते एक आम आदमी दीवाली कैसे मनाऐगा ? लोग कहते है कि लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन की बरसात होती है। पर गरीब को तो अपने पेट पालने के लाले पढ़े हैं ऐसे में वह क्या पूजा पाठ करेगा? दीवाली तो मानो धन का त्यौहार है। जिसके पास धन उसी की दीवाली। जिसके पास धन नहीं उसका दीवाला।
Saturday, October 25, 2008
वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन : सुशील प्रकरण
इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।
बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
((इस पोस्ट को कापी करके आप अपने-अपने ब्लागों-वेबसाइटों पर प्रकाशित करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जा सके और वेब माध्यम के जरिए सुशील कुमार की लड़ाई को विस्तार दिया जा सके।))
Friday, October 24, 2008
नेताओं के भाषण में मानव मुक्ति
के प्रति जताता है। लगता है कि नेताजी ने जनता के लिए कोई भविष्यवाणी कर दी हो। नेताजी कहते है कि हमारी पार्टी यदि सत्ता में आती है तो हम इस क्षेत्र का नक्शा ही बदल देगें। सम्मानिय नेताजी यह नहीं जानते हैं कि पहले अपने विचारों के नक्शा को बदले बाद में क्षेत्र की बात करे। बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में इन महाशय का महत्वपूर्ण योगदान है। विकास के प्रति नेताओं की भूमिका नकारात्मक हैं, भाई साहब सकारात्मता की ओर सोचते ही नहीं। नेताओं की पीढ़ी धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही हैं। आज के युग में जितने भी घोटले या गैर कानूनी काम होते हैं उनके पीछे नेताओं का हाथ जरूर रहता है। मतलब यह हुआ कि नेताओं की दम पर उनके साथी हवाई उड़ाने भरते हैं। देष के सभी नेता अपने मुंह पर भ्रष्टाचार का नाकाप लगाकर देष के वातावरण को दूषित कर रहे हैं। किसी ने सही कहा है कि सफेद पोशाक के पीछे काले शैतान का वास होता है। भारत देश के सुधारकों की अग्निपरिक्षा ली जाए तो वह भी हमाम में नगें खडे़े दिखाई देगें। नेताओं के भाषणवाद से ऐसा लगता है कि वह मानवता को मुक्ति धाम तक एक न एक दिन अवश्य पहुंचा देगें।Monday, October 20, 2008
चुनावों का शंखनाद
मनोज कुमार राठौर
१
चुनावों का शंखनाद
नेताओं के आश्वासन
पार्टियों के घोषणा पत्र
सभी हैं दिखावे
हमें अपना काम करने दो।
२
घोषणाओं का अंबार
कार्य के प्रति कर्मठ
सत्ता बनेगी तो काम करेगें
सभी हैं दिखावे
हमें अपना काम करने दो।
३
रैली और पद यात्रा
झुग्गी-बस्ती का दौरा
जनता के छूते पैर
सभी हैं दिखावे
हमें अपना काम करने दो।
४
जातिगत वोटों को बढ़ावा
भाषण में सामप्रदायिकता
सरकारी नौकरी का लालच
सभी हैं दिखावे
हमें अपना काम करने दो।
५
जेब गरम करने का तरिका
भ्रष्टाचार के तुम पुतले
आंखों से काजल मत चुराओं
सभी है दिखावे
हमें अपना काम करने दो
६
मौसम आते और जाते हैं
जो बोलो वह करके दिखाओ
झुठ मत बोलो भाई
सभी हैं दिखावे
हमें अपना काम करने दो।
Friday, October 17, 2008
दैनिक जागरण की लापरवाही
त कर दिए गए। परीक्षा परिणाम की जानकारी विवि के नोटिस बोर्ड अथवा वेबसाइट डब्लूडब्लूडब्लू डाट बीयूभोपाल डाट एनआईसी डाट इन पर देखी जा सकती है। जब बीएससी के पूरक छात्र सोनी ने यह खबर पढ़ी तो वह तुरंत इंटरनेट पर परीक्षा परिणाम खंगालने लगा, पर उसके हाथ निराशा ही लगी क्योकि इंटरनेट पर परीक्षा परिणाम होता तो मिलता। इसके बाद वह सीधे बरकतउल्ला विश्वविद्यालय गया, लेकिन वहां भी कोई लिस्ट नहीं लगी थी। उसने जब पूछताछ काउटंर पर इसकी जानकारी ली तो पता चला कि दैनिक जागरण ने बीसीए के स्थान पर बीएससी छाप दिया। हालांकि छात्रों ने बताया कि यही खबर दैनिक भास्कर में सही छपी।Thursday, October 16, 2008
देशहित में है चुनाव का एक साथ होना

के पायदान तक पहंुचने के लए शुरू हुए दलबदल के खेल ने जल्दी-जल्दी चुनाव का ऐसा रास्ता खोला जो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पिछले महीने एक न्यूज चैनल के समारोह में कहा था कि सभी संवैधानिक संस्थाओं के चुनाव एक ही दिन में कराए जाने चाहिए। हालांकि सभी तरह के चुनाव एक ही दिन में कराने का विचार अव्यावहारिक लगता है, लेकिन यदि सभी राजनीतिक दल इस पर राजी हो जाऐ, तो यह सपना पूरा हो सकता है। यदि हम हर समय चुनाव में ही व्यस्त रहे तो विकास का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है, यह सोचने की बात है। एपीजे अब्दुल कलाम भी चाहते है कि चुनावों को एक साथ कराना चाहिए जो विकास के लिए अति आवष्यक है। हमारे देश के पूर्व उप राष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत ने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव पांच साल बाद एक निष्चित अवधि में एक साथ कराए जाने चाहिए। यदि किसी सरकार को अविष्वास प्रस्ताव के माध्यम से अपदस्थ करने की कोशिस की जाए तो ऐसी स्थिति में पहले ही वैकल्पिक सरकार गठन की व्यवस्था का प्रावधान भी होना चाहिए। अपरिहार्य स्थिति में राज्य सरकार को भंग करना भी पड़े तो ऐसे चुनाव विधानसभा की शेष अवधि के लिए ही कराए जाने चाहिए। शेखावत ने भी स्पष्ट कहा है चुनाव को एक निष्चित अवधि में कराए जाना चाहिए और चुनाव में वैकल्पिक प्रावधान भी होना चाहिए। पूर्व चुनाव आयुक्त डाॅ। जीवीहजी कृष्णामूर्ति ने अजीत मैदोला को बताया कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। लेकिन हमारे देश में संविधान सर्वोपरि है और उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। इसके चलते लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराया जाना संभव नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय राजस्थान समेत छह राज्यों के विधानसभा चुनाव होने है ओर उस के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव। अच्छा हो कि छह राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। चुनाव एक साथ कराने से कई फायदे हैं। एक तो आम आदमी की चुनाव के प्रति रूचि बनी रहती है,दूसरा खर्चा कम होता है ओर सभी राजनीतिक दलों को भी लाभ होता है। उन्होने कहा कि 1952 से लेकर 1962 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते थे और एक दिन में ही पूरे देश में चुनाव सम्पन्न हो जाते थे। इससे आम आदमी तो वोट डालने जाता ही था, सरकारी कर्मचारियों को भी राहत मिलती थी। अब विधानसभा ओर लोकसभा के चुनाव एक साथ हो सकते हैं। मेरा सुझाव यह है कि बड़े राज्यों में तीन चरणों में, मध्यम राज्यों मे दो चरणों में और छोटे राज्यों में एक चरण में चुनाव हो सकते हैं। चरणों में चुनाव कराने के पीछे मकसद एक ही होता है कि पर्याप्त सुरक्षा बल उपलब्ध हो जाते है और चुनाव निष्पक्ष और साफ-सुथरे ढंग से कराए जाते हैं।Wednesday, October 15, 2008
स्वतंत्र भारत का असली चेहरा
पर इस भारत में उन राक्षकों का भी ढेरा है जो जिस थाली में खाते है उसी में छेद करते हैंै। आजादी के बाद हुए जीप घोटाला, बैंक घोटाला, चीनी घोटाला, जमीन घोटाला, खाद्यान्न घोटाला, डेयरी घोटाला, चारा घोटाला, शेयर घोटाला और दवा घोटाला जैसे न जाने कितने घोटाले हो चुके हैं जो गरीब के खून पसीने की कमाई में से किये गए हैं। जब भी इस तरह के घोटाले होते है तो कोई डकार तक नहीं लेता। क्या आजाद होने का यह मतलब है? तो फिर देश अंग्रेजों के हाथ में ही ठीक था। भारत के संविधान निर्माताओ के द्वारा बनाए गए नियमांे का पालन उनके अंगरक्षक द्वारा किया जाना था, पर ऐसे संभव नही पाया और वही अंगरक्षक उन नियमों की धज्जियां उड़ाते दिखते हैं। मध्यप्रदेश की विधानसभा में अध्यक्ष की आसंदी पर जो काले दुपट्टे फेकें गए थे उससे ऐसा लगता है कि नेताओं को यह मालूम नही था कि वह उस पवित्र मंदिर में खडे़ है जिसकी पूजा पूूरा देश करता है। इस घटना के बाद हुए नोट कांड ने तो आजादी के सपनें को चक्माचूर कर दिया। संसद में हुए नोट कांड ने तो संसद की मर्यादा को ताख पर रख दिया। जिस तरह से नोटों की गड्डी संसद में उछाली जा रही थी इससे ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई नाच गाना हो रहा है। नोटों की इस नुमाईश ने आजाद भारत को शर्मशार के साथ उस आजाद भारत कल्पना पर सवालियां निशान लगा दिया है। Tuesday, October 14, 2008
आजादी थी तुम बिन अधुरी
ता दिलावाने में भगतसिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इस यौद्धा के बिना आजादी अधुरी थी। आजादी की इस हवा को भगतसिंह ने नई दिशा प्रदान की थी। Monday, October 13, 2008
जागो हिन्दुस्तान
उठो वीर अब तुम सब जागो, जागो हिन्दुस्तान।नई सदी का दौर चला है, न घटने देंगे मान।
उठो वीर अब तुम...
खून बहेगा बह जाने दो, दोष लगेगा लग जाने दो।
भाई मिटेगा मिट जाने दो, उम्र घटेगी घट जाने दो।
देश प्रेम की ज्योत जली है, सब कर दो बलिदान।।
उठो वीर अब तुम...
राजनीति के दौर से बचना, इसके जाल में तुम मत फंसना।
सत्य त्याग की आग में जलकर, एक नया इतिहास है रचना।
प्रेम प्यार से बहुत हो चुका, अब निकालो तीर कमान।।
उठो वीर अब तुम...
धर्म पुकारे तुमको आकर, राजनीति से नजर बचाकर।
घाटी में सुलगे अंगारे ,गद्दारों को घर में पाकर।
आतंकी सारे गद्दारों के पल में हर लो प्राण।
उठो वीर अब तुम...
यह कविता मेरे घनिष्ट पत्रकार मित्र प्रशांत शर्मा द्वारा लिख गया है।
Saturday, October 11, 2008
ठाकरे की दादागिरी
मुंम्बई मेरे बाप की है: उद्धव ठाकरेWednesday, October 8, 2008
ममता की करनी, सिंगुर को पड़ी भरनी

मनोज कुमार राठौर
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और तृणमुल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बेनर्जी की राजनीति ने सब कुछ मिट्टी में मिला दिया। जहां एक ओर सरकार किसानों को विश्वास दिलाने मे विफल रही, वहीं दूसरी ओर ममता बेनर्जी ने किसानों का विश्वास तो जीता, पर राज्य की तरक्की पर अकुंश लगा दिया। दोनों तरफ से नकारा कोशिश की गई। कोई भी रतन टाटा की नैनो परियोजना को नहीं रोक पाया। अब पश्चिम बंगाल की छवि धूमिल हो गई है। सिंगुर की तो छोड़ो पश्चिम बंगाल के किसी भी ईलाके में कोई भी कम्पनी निवेश करने में दस बार सोचेंगी।
बुद्धदेव भट्टाचार्य आखिर रतन टाटा को नहीं मना सकें। उनके द्वारा की गई सैंकड़ों मीटिंग का कोई नतीजा नहीं निकला। बेचरे क्या करते उनकी टांग तो ममता जी खिंच रही थी। चलो माना कि ममता बेनर्जी किसानों की हित की बात कर रही है पर इस हित के पीछे उनका भी वोट हित छिपा है। बहनजी ने रतन टाटा को नौ दो ग्यारहा कर दिया पर शायद वह इस बात से अनभिज्ञ है कि किसी राज्य की तरक्की में उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कितनी इनवेस्ट मीटिंग रखी और अपने राज्य में सभी कम्पनी को निवेश करने के लिए आंमत्रित किया। मध्य प्रदेश के विकास के लिए वह नैनो परियोजना को भी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे। पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने राज्य के विकास के लिए पहला कदम बढ़ाने की कोशिश अवश्य की, पर वह उसमें असफल रहें। कारण साफ है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति जनता में विश्वास पैदा नहीं कर पा रही है।
नैनो परियोजना के लिए बुद्धदेव ने 1000 एकड़ जमीन और श्रेष्ठंतम रियायते दी थी। बुद्धदेव चाहते थे कि टाटा की इस परियोजना से उनके राज्य की स्थिति सुधरेगी और बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा, लेकिन वह किसानों की मांग और उनके विश्वास पर खरा नहीं उतर सकें जिसका फायदा ममता बहन ने ले लिया। नैनो फैक्ट्री 300 एकड़ जमीन पर स्थापित हो चुकी थी लेकिन उसके कल-पुर्जे बनाने के लिए 1000 एकड़ जमीन की ओर आवश्यकता थी। किसान भाईयों को सरकार बाजार मूल्य से भी अधिक कीमत देने को तैयार थी। रतन टाटा किसानों की मांगों को पूरी नहीं कर पर रहे थे। किसानों ने सरकार के सामने अपनी मांगों को लेकर प्रस्ताव भी रखा परन्तु इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया, जिससे किसान नाराज थे। ममता ने किसानों के जख्म पर मलम लगाते हुए उनका साथ दिया और अंसन पर बैठ गई। ममता का जन आंदोलन बिकराल रूप धारण करने लगा, जिसको देखते हुए रतन टाटा ने किसानों की 150 एकड़ जमीन वापस की। इसके बाद भी आंदोलन थमने को नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे हालात में नैनो परियोजना प्रांरभ करना संभव नहीं था इसलिए रतन टाटा के सामने सिंगुर से नैनो परियोजना को हटाने के अलावा कोई विकल्प शेष बचा नहीं।
1500 करोड़ के निवेश के बाद भी हालात में सुधार नहीं आ रहा था इसी कारणवश रतन टाटा ने अपनी नैनो परियोजना गुजरात में लगाना का फैसला लिया। अब नैनों ने सिंगुर के किसानों और वहां की राजनीति से टाटा कर लिया और गुजरात का दामन थाम लिया। पश्चिम बंगाल नाम पर जो कालिख पुती है उसको मिटाना असंभव है।
Monday, October 6, 2008
ईसाइयों पर हमला सही या ग़लत?
- मनोज राठौर
गिरिजाघरों पर किए जा रहे हमले में हिन्दु संगठनों को दोषी ठहराया जा रहा है, लेकिन यह असत्य है। इन हमलों को यदि गंभीरता से लिया जाए तो इसका जिम्मेदार स्वयं इसाई समुदाय है।
ईसाई समुदाय अंग्रेजों के सिद्वांतों पर कार्य कर रहा है। जिस तरह अंग्रेजों ने भारत देश को शनैः शनैः अपना गुलाम बनाया थाए उसी नीति पर ईसाई समुदाय काम कर रहा है। वह चाहता है कि हिन्दुस्तान को यदि गुलाम बनाना है तो सबसे पहले उसकी जनता का धर्मांतरण किया जाए। पर वह ऐसा करने में असफल हो रहे हैंए क्योंकि यदि वह ऐसा काम करते हैं तो उसका विरोध जनता द्वारा किया जाता है। भारत के हर एक कोने में ईसाई समुदाय बसा है और उसके द्वारा संचालित कई संस्थाएं जनता के लिए काम भी कर रही हैं। पर जब धर्मांतरण की बात आती है तो उसका खामियाजा भी उसे ही भुगतना पड़ता है।
मैं भी ईसाई समुदाय द्वारा संचालित डगलस हाई सैकण्डरी स्कूल से अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की। जब मैं वहां 10वीं कक्षा में पहुंचा तो मुझे ईसाइयों
की नीति के बारे में पता चला। हमारी एक अतिरिक्त कक्षा लगती थी, जहां हमें बाइबिल के बारे में बताया जाता था। प्रत्येक रविवार वहां चर्च के कार्यक्रम होते थे। यहां हजारों की संख्या में लोग आते थे। यह प्रक्रिया यूं ही चलती रही, उस समय मैंने अखबार में एक फोटो देखा। वह फोटो किसी ओर का नहीं बल्कि मेरे प्राचार्य महोदय जी का था। जब मैंने वह खबर पड़ी तो पता चला कि वह गोविन्दपुरा स्थित एक चर्च में गये थे। वहां बजरंग दल ने उन पर हमला किया। हमले का कारण था धर्मांतरण। बजरंग दल का आरोप था कि चर्च में धर्मांतरण का काम चल रहा था। मैंने इस बात को अंधविश्वास मानाए क्योंकि कोई किसी का धर्म परिवर्तन कैसे कर सकता है।
भोपाल से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव में मेरे रिश्तेदार रहते हैं। वहाँ एक ईसाई समुदाय का चर्च भी है। मुझे अपने रिश्तेदार से कुछ काम था अतः मैं वहां गया। अपने काम के साथ मुझे अपने प्राचार्य की घटना भी याद आ गई। मैंने वहां स्थित कुछ लोगों से बात की। जिससे मुझे पता चला कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। वहां के स्थानीय लोगों ने बताया कि चर्च के फादर उनका निःशुल्क इलाज और बच्चों को पढ़ाने का कार्य भी करते हैं। लेकिन उन्होंने मुझे एक और बात बताई। वहां के लोगों से कहा जाता है कि आप सब ईसाई धर्म को अपना लो। तब ही तुम्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी। मुझे आश्चर्य हुआ कि ईसाई धर्म इतना नीचे गिर सकता है।
कर्नाटक, बैंगलुरु और उड़ीसा के गिरिजाघरों में जब आग लगाने की घटना मैंने अखबार में पड़ी तोए सभी के पीछे एक ही कारण छिपा हुआ थाए धर्म परिवर्तन। इस पर भी मैं ईसाइयों के हित में थाए परन्तु सतना में जो घटना हुई हैए उससे मेरे विचार एकदम बदल गए। सतना में क्रिस्तुकला मिशन हायर सेकंडरी स्कूल में कार्यरत 18 ड्राइवरों को नौकरी से निकाल दिया गया। वहां की प्रिंसिपल फादर वर्गीस ने कहा कि दरअसल स्कूल के पास वाहन नहीं है इसलिए ड्राइवरों को हटाया गया है। पर मामला कुछ और ही था जिसके कारण ड्राइवरों को निकाला गया। सभी 18 ड्राइवरों ने एक जुबान में कहा कि एक दिन फादर वर्गीस हम सभी को सतना नदी पर ले गए तथा सभी को पानी में डुबकी लगाने को कहा और स्वयं ने भी डुबकी लगाई। डुबकी लगवाने के बाद फादर ने कहा कि आज से तुम्हारे माता.पिता मर चुके हैंए तुम मरियम की संतान हो। इस तरह जबरिया धर्म परिवर्तन कराए जाने का ड्राइवरों ने विरोध किया। इस पर बिना कारण बताए स्कूल प्रबंधन ने नौकरी से हटा दिया। इस तरह धर्मांतरण के कई मामले खबरों की सुर्खियां बने। कर्नाटक सरकार और केंद्र सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए आरोपियों पर कानूनी धाराएं भी लागू की। पर सरकार इन घटनाओं के कारणों को पता करने पर जोर नहीं दे रही है।ईसाई समुदाय पर हमले के पीछे एक ही कारण निकल कर आता है कि वह लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करता है। ईसाई पर जो हमला हो रहा है वह सही है या गलतए इसका फैसला तो जनता कर ही देती है। यदि ईसाई समुदाय अपनी यह हरकत छोड़ दे तो उन पर ऊंगली तक कोई नहीं उठाएगा।
लोगों के धर्म पर नज़र मत डालो
Wednesday, October 1, 2008
नाम तो है पाक, पर काम है नापाक

भारत के प्रत्येक नागरिक को पता है कि आतंकवादी देश कौन सा है?...फिर भी खामोशी क्यों? अब हमें यह चुप्पी तोड़नी होगी। पाकिस्तान आतंकवादी घटना को करने से भले ही इंकार करता हो लेकिन अब किसी देश से यह छिपा नहीं है कि पाकिस्तान ही आतंकवाद का जनक है। इस देश से ही जेहाद के नाम पर सैकड़ों आतंकवादी संगठन बनाए जा रहे हैं। क्या यह पाकिस्तान इन आतंकवादी से सुरक्षित है? पिछले दिनों पाकिस्तान में कई बम धमाके हुए जिसमें कई लोगों की जाने गई। क्या वहां मरने वाले लोग आतंवादी थे या फिर मारने वाले? इसका जबाव तो पाकिस्तान ही दे सकता है। आतंकवादी का न तो कोई धर्म होता है और न कोई महजब। वह जिस लड़ाई के लिए आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं, उस वजह को हिन्दुस्तान जानता है। जम्मू कश्मीर को तो वह नैतिक युद्ध से हासिल नहीं कर सकता है इसलिए उसे प्राप्त करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है। पर भारत इस आतंकवादी घटनाओं से डरने वाला नहीं है। जब हमारा देश विश्व शक्ति अमेरिका से परमाणु करार कर सकता है तो इस पर भी कड़ा कदम उठा सकता है। पाकिस्तान यदि समय रहते अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो भारत के पास एक ही रास्ता बचता है, वह है पाकिस्तान पर हमला।
किसी ने सही कहा है कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। जब भी आतंकवादी खुलेआम कहते है कि वह इस्लाम की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दे देगें, लेकिन वह यह नहीं जानते हैं कि जब धमाके किये जाते
है तो उसमें मरने वाले लोगों में मुस्लमान भाई भी शामिल होते हैं। क्या वह असली इस्लामी नहीं हैं? षर्म करो ऐसे मुस्लमानों जो इस्लाम धर्म को बदनाम करने पर तुले हो। भारत के मुस्लमानों से पूछो कि इस्लाम धर्म क्या है? हिन्दुस्तान में पाकिस्तान से भी ज्यादा मुस्लमान निवास करते हंै। वह चाहे तो भारत में जेहाद के नाम पर बगावत कर सकते हैं, परन्तु वह ऐसा नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि इस्लाम धर्म क्या है। पाकिस्तान में अब ऐसा लगता है कि इस्लाम धर्म की परिभाषा को बदल दिया गया है। इस परिभाषा को बदलने वाले ओर कोई नहीं, बल्कि उसके अपने ही है।कल रूस को बिखरते देखा था
अब ईराक को टूटता देखेगें
हम बर्क-ए-जेहाद के शोलों में
पाकिस्तान को जलता देखेगें।
पाकिस्तान की इस आतंकवादी फैक्ट्री में ऐसे बम बनाए जा रहे हैं जिनके धमाकोें से भारत का दिल तक दहल गया। लगता है कि इन धमाकों की आवाज भारत में नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में सुनाई देगी जिसका जीता जागता उदाहरण है अमेरिका का वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला। इस आतंकवादी नौका को जो भी चला रहा है वह यह जान ले कि जब कुत्ते की मौत आती है तो वह सभी पर भौंकता है और बाद में लोग उसे पागल करार देकर मार देते हंै। भारत में सीरियल बम धमाकों को आतंकवादी अपनी सफलता समझते हैं। इस सफलता से उनके आका तो बहुत खुश होगें क्योंकि वह आगे से बार तो कर नहीं सकते इसलिए पीछे से ही सही। चेतावनी देकर हमला करने से उनका सीना जरूर फूल गया होगा। पर भारत की एकता पर चोट करने वाले यह कीदड़ अब कुत्ते की मौत मारे जाएगें।
पहले से गरीबी की मार झेल रहा है। शायद हमारा पड़ोसी देश यह भूल गया है कि जब वह मुस्लिमांे को लेकर भारत से अलग हुआ था तो सुनसान जमीन पर नंगा खड़ा हुआ था। हमनें 35 करोड़ रुपए दिए तब जाकर उसके नंगे शरीर पर कपड़े आए। आज देखों वही भिखारी देष अपनी आतंकिय सेना लेकर भारत को संाप्रदायिकता के नाम पर लड़वाना चाहता है, जिससे भारत की एकता डेमेज़ हो जाए और इसका फायदा वह ले सके, लेकिन उसके यह नापाक ईरादे कभी भी सफल नहीं होगें क्योकि भारत में अनेकता होने के बाद भी एकता है।
भारत चाहे तो पाक को चंद मिनटों में अपना गुलाम बना सकता है पर वह निर्दोषों की जान नहीं लेना चाहता इसलिए बार-बार समझोता करता है। पर अब मुझे ऐसा लगता है कि इनके समझ में नहीं आएगी। अब इन्हें पूरी फिल्म दिखाने की जगह बस एक छोटा से टेलर दिखाया जाए ताकि इनके दिलों में खौफ पैदा हो, वरना यह साले सिर पर चढ़कर ताडंव करेगें। इस आतंकवादी बीमारी को भारत से जड़ से खत्म करना होगा।
आतंकवाद समस्या है हमारी
दूर करने की जिम्मेदारी है हमारी।
Tuesday, September 30, 2008
कुपोषण बनी देशव्यापी समस्या

Monday, September 29, 2008
मत डर हिन्दुस्तान, क्या करेगा पाकिस्तान
मनोज कुमार राठौर
मत डर हिन्दुस्तान
क्या करेगा पाकिस्तान
हमें पता आतंकवादी कौन
जब भी क्यों हम रहते मौन
मासूमो की जान है जाती
सरकार तो बस नोट दिखाती
लगता नेताओं की है सांठ-गांठ
इसलिए सुनती है उनकी बात
पोटा कानून लागू नहीं करती
क्यों नये कानून की माला जपती
चुनौती देकर करते हमले
फिर भी हम नहीं होते चोकन्ना
आख़िर क्यों नहीं लेतें बदला
कब तक सहगें हम यह हमला
जब किया है परमाणु करार
तो इस पर भी करो विचार
अब तो करना होगा युद्ध
तभी होगें हम सब मुक्त
कब तक करे हम समझोता
बह देते हर समय धोखा
सभी एक ही थाली में हैं खाते
इसलिए घर के भेदी लंका ढाते
अब समझोते की नहीं
समझाने की बारी है
चंद मिनटों में करो यह काम
भारत मां का लेकर नाम
Wednesday, September 24, 2008
आतंकवाद भाई



